क्या इलैक्टोरल बॉण्ड चुनावी भूकंप साबित होंगे?

Edited By ,Updated: 20 Mar, 2024 05:26 AM

will electoral bonds prove to be an electoral earthquake

इलैक्टोरल बॉण्ड के सनसनीखेज खुलासे इस चुनाव का रुख मोड़ सकते हैं। लेकिन तभी, अगर इसके सही सवाल और सच्चे जवाब देश की जनता तक पहुंच जाएं। अगर जनता को समझ आ जाए कि यह योजना राजनीति में काले धन को समाप्त करने के लिए नहीं, बल्कि काले धन पर सफेदी का...

इलैक्टोरल बॉण्ड के सनसनीखेज खुलासे इस चुनाव का रुख मोड़ सकते हैं। लेकिन तभी, अगर इसके सही सवाल और सच्चे जवाब देश की जनता तक पहुंच जाएं। अगर जनता को समझ आ जाए कि यह योजना राजनीति में काले धन को समाप्त करने के लिए नहीं, बल्कि काले धन पर सफेदी का रंग-रोगन करने के लिए बनी थी। अगर यह जनता को पता चल जाए कि सरकार ने हर कदम पर इलैक्टोरल बॉण्ड के आंकड़े छुपाने के लिए कितनी कोशिश की। अगर दिन-दिहाड़े हुई इस डकैती के पूरे सच का खुलासा हो जाए तो बोफोर्स या 2-जी जैसे भ्रष्टाचार के मामले इसके सामने बच्चों का खेल नजर आएंगे। 

बोफोर्स में खोजी पत्रकारों ने 64 करोड़ की रिश्वत का आरोप लगाया था, जिसे सरकार ने कभी कबूल नहीं किया, कोर्ट में साबित नहीं हो पाया। यू.पी.ए. की सरकार के दौरान 2-जी में घोटाले का आरोप कैग द्वारा अनुमान पर आधारित था, वह भी कोर्ट में साबित नहीं हो पाया। इलैक्टोरल बॉण्ड का मामला तो शुरू ही कोर्ट के आदेश से हुआ है। सबूत की जांच की जरूरत ही नहीं है - पूरा सच सबके सामने है। असली सवाल यह नहीं है कि इस इलैक्टोरल बॉण्ड के गोरखधंधे से कुल कितना पैसा इकट्ठा किया गया। वैसे अब तक घोषित 16,518 करोड़ रुपए अपने आप में बहुत बड़ी रकम है। यूं समझ लीजिए कि पांच साल की अवधि में हर लोकसभा क्षेत्र के लिए कोई 30 करोड़ रुपए इस योजना के माध्यम से इकट्ठे किए गए। यानी केवल इस योजना द्वारा इकट्ठा किया गया धन एक लोकसभा क्षेत्र और उसमें पडऩे वाले औसतन सात विधानसभा क्षेत्रों में प्रति क्षेत्र 10 उम्मीदवारों के अधिकतम चुनावी खर्च से भी ज्यादा है। 

फिर भी यह राशि अपने आप में सबसे बड़ा सवाल नहीं है। सच यह है कि किसी भी बिजनैस की तरह राजनीति के धंधे में भी सफेद धन कुल खर्च का एक छोटा-सा हिस्सा भर होता है, आटे में नमक के बराबर। असली कांड सिर्फ 16,518 करोड़ रुपए का नहीं है। यह तो राजनीति के धंधे का वह छोटा सा हिस्सा है, जो संयोग से कानून की पकड़ में आ गया है। पूरी रकम तो लाखों करोड़ रुपए की होगी।असली सवाल यह भी नहीं है कि इलैक्टोरल बॉण्ड के माध्यम से इकट्ठे किए गए धन का कितना हिस्सा भाजपा को मिला। अभी तक प्राप्त सूचना के हिसाब से भाजपा को 8250 करोड़ रुपए के बांड मिले। यानी बाकी सब पार्टियों को कुल मिलाकर जितना धन मिला, उतना अकेले भाजपा को मिला। यह भाजपा को मिले वोट के अनुपात या देश में भाजपा के सांसदों और विधायकों के अनुपात से ज्यादा है। अगर प्रति उम्मीदवार के लिहाज से देखें तो भाजपा के हर उम्मीदवार के पास विपक्ष के हर उम्मीदवार से कई गुना ज्यादा चुनावी फंड था। 

अगर इसमें चुनावी ट्रस्ट के माध्यम से मिले पैसे को जोड़ दें और पी.एम. केयर नामक गोरखधंधे के फंड को भी जोड़ दें तो भाजपा का चुनावी फंड संपूर्ण विपक्ष से कई गुना ज्यादा है। लेकिन यह भी असली सवाल नहीं है। असली सवाल यह है कि हर नियम और मर्यादा को ताक पर रख कर इलैक्टोरल बॉण्ड को किस तरीके से वसूला गया। केंद्र सरकार के तहत आने वाली तमाम एजैंसियों का इस्तेमाल कर इस चुनावी चंदे को वसूली का धंधा बनाया गया। यह इस योजना का दुरुपयोग नहीं था। सच यह है कि यह योजना ही इसी काम के लिए बनाई गई थी। इसे बनाने के लिए संविधान को धता बताई गई। और जब सुप्रीम कोर्ट ने देर से ही सही, इस पर उंगली उठाई, तब हर सरकारी एजैंसी का इस्तेमाल कर इसके सच को छुपाने की कोशिश की गई। यह सिर्फ एक बड़े राजनीतिक भ्रष्टाचार का मामला नहीं है। यह भ्रष्टाचार को कानूनी जामा पहना कर दिन-दिहाड़े डकैती को सामान्य आचरण बनाने का मामला है। इस लिहाज से यह आजाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा स्कैम है। 

आप इस डकैती के कुछ नमूने देखिए। फ्यूचर गेमिंग नामक लाटरी की कंपनी पर 2 अप्रैल, 2022 को ई.डी. का छापा पड़ता है। उसके पांच दिन बाद वह कंपनी 100 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बॉण्ड खरीदती है। इसी तरह डॉक्टर रेड्डी नामक फर्म पर 13 नवम्बर, 2023 को आयकर विभाग का छापा पड़ा और उसने 17 नवम्बर को 21 करोड़ के बॉण्ड खरीदे। इसी तरह बॉण्ड की खरीद को कांट्रैक्ट के साथ जोडऩे के नमूने को देखिए। सी.एम. रमेश पहले टी.डी.पी. के नेता थे, तब ऋत्विक प्रोजैक्ट नामक उनकी कंपनी पर छापा पड़ा। फिर वह भाजपा में चले गए और उन्होंने 45 करोड़ के बॉण्ड खरीदे। 
आदित्य बिड़ला ग्रुप ने 534 करोड़ के बॉण्ड खरीदे। उस ग्रुप की ग्रासिम नामक कंपनी ने 33 करोड़ के बॉण्ड लिए। 

सरकार ने एंटी डंपिंग ड्यूटी हटा दी, जिससे कंपनी को बड़ा मुनाफा हुआ। उसके बाद उन्हें हिमाचल में 1098 करोड़ का पॉवर प्रोजैक्ट का कांट्रैक्ट मिल गया। इसी तरह कैवेंटर नामक कंपनी ने अलग-अलग नामों से 617 करोड़ के बॉण्ड खरीदे लेकिन कंपनी का कुल मुनाफा 10 करोड़ भी नहीं है। अभी तक औपचारिक रूप से यह पता नहीं चला है कि वे बॉण्ड किस पार्टी को दिए गए, लेकिन अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि पैसा भाजपा को गया होगा। 

हर दिन इस महाघोटाले की नई-नई परतें खुल रही हैं। हर दिन सरकार किसी तरह से इस सच को टालने या इस पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। मीडिया ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से इस खबर को कुछ जगह तो दी है, लेकिन जिस तरह अन्ना हजारे के समय भ्रष्टाचार के आरोपों को खुल कर जनता के सामने 24 घंटे पेश किया जा रहा था, वैसा कुछ करने की हिम्मत किसी की नहीं है। इसलिए अभी भी एक बहुत छोटे वर्ग को इस कांड के बारे में पता लग सका है। अगर ‘इंडिया’ गठबंधन इस घोटाले को 2024 के चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनाए और इसे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाए, तो इस चुनाव में चमत्कार हो सकता है।-योगेन्द्र यादव


 

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