क्या 2022 के चुनाव तक पंजाब में अस्थिरता के बादल छंट जाएंगे

Edited By ,Updated: 16 Jul, 2021 06:42 AM

will the clouds of instability dissipate in punjab by 2022 elections

चैमगोईयों का बाजार पंजाब की राजनीतिक फिकाा में गर्माया हुआ है कि किसान आंदोलन के नेता अपनी पार्टी बना रहे हैं। किसान नेता राजेवाल ‘आप’ से चुनाव लड़ेंगे। आज चाहे वह इंकार कर...

चैमगोईयों का बाजार पंजाब की राजनीतिक फिकाा में गर्माया हुआ है कि किसान आंदोलन के नेता अपनी पार्टी बना रहे हैं। किसान नेता राजेवाल ‘आप’ से चुनाव लड़ेंगे। आज चाहे वह इंकार कर रहे हैं परन्तु सस्पैंस बरकरार है। किसानी आंदोलन ने पंजाब की सभी राजनीतिक पार्टियों को पशोपेश में डाल रखा है। 

वैसे तो पंजाब की राजनीति में चार राजनीतिक दल ही मैदान में दिखाई दे रहे हैं। कभी कम्युनिस्ट पंजाब के कुछ हिस्सों में हुआ करते थे पर आज की राजनीति के संदर्भ में वे आलोप हैं। हां, किसान आंदोलन में क युनिस्ट-क युनिस्ट शब्द जरूर सुनाई दे रहा है। पंजाब नेताओं से विहीन दिखाई देता है जो छिटपुट हैं, वे आपस में जूतम-पैजार हैं। कांग्रेस के कैप्टन अमरेन्द्र हैं तो सही, पर वह जन-नेता नहीं, उनमें राजशाही है। जनता से तो क्या कैप्टन साहिब अपने ही चुने हुए प्रतिनिधियों से नहीं मिलते। उनके मंत्री भी नाराज, एम.एल.ए. भी। पंजाब की सर्वसाधारण जनता की कौन सुने?  

कांग्रेस, जो इस समय सत्ता पर विराजमान है, ने बिना शक 2017 में प्रचंड बहुमत हासिल कर अपनी सरकार बनाई परन्तु 2022 आते-आते इसने अपना कोई प्रभाव नहीं बनाया। वायदों का एक भ्रम फैलाया, जनता को भरमाया और पंजाब की जनता ने अपने को ठगा-सा पाया। फिर गेहूं या चावल की खेती के अतिरिक्त पंजाब की आमदनी ही क्या है? कोई कल-कारखाना, व्यापार या उद्योग छोटे से पंजाब में है कहां? हर घर को नौकरी, नशा खत्म, रेत माफिया खत्म, कुछ भी नहीं। अलबत्ता सिख होकर कैप्टन साहिब ने गुटका साहिब का ही अपमान कर दिया।  

नवजोत सिंह सिद्धू और अमरेन्द्र सिंह स्वयं आपसी मतभेदों में ऐसे फंसे कि जग हंसाई का पात्र बन गए। अफसरशाही निरकुंश और विकास कार्य ठप्प होकर रह गए। लगता नहीं कांग्रेस 2022 के चुनाव तक अपने को संभाल सके। 

नि:संदेह शिरोमणि अकाली दल (बादल) के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर ‘मास्टर स्ट्रोक’ मारा है परन्तु कब तक? बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन निभाया ही किसके साथ है? स्वार्थ निकाला और अलग? फिर पंजाब में यह गठबंधन प्राकृतिक और स्वाभाविक नहीं। शायद चुनाव से पहले ही टूट जाए। शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी को वही सीटें दी हैं जिन पर भारतीय जनता पार्टी लड़ती आई है। इन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी का आधार ही नहीं। दूसरा, शिअद (बादल) को उसके अपने साथी अछूत समझ कर छोड़़ गए हैं। सुखदेव सिंह ढींडसा और ब्रह्मपुरा का संयुक्त अकाली दल इसे नुक्सान पहुंचाएगा। शिअद यह क्यों भूल रहा है कि ‘बरगाड़ी कांड’ सिखों की भावनाओं से जुड़ा है। अत: सुखबीर बादल और विक्रम सिंह मजीठिया को अपने कोर ग्रुप के साथ सारी परिस्थितियों पर गहन चिंतन करना होगा। मगर चुनाव तो आ गया। 

पर यह वास्तविकता तो पंजाब के राजनेताओं को समझनी चाहिए कि ‘आप’ पंजाब में जोर से एक ‘धारणा’ छोडऩे में सफल रही कि 2022 में उसकी सरकार बनेगी। पर यह महज प्रचार है, वास्तविकता अलग है। जरा 2017 के विधानसभा चुनावों की ओर ध्यान डालें। तब बड़ा शोर था कि अबकी बार ‘पंजाब में ‘आप’ की सरकार’ बनेगी। बड़ा शोर था कि नवजोत सिद्धू ‘आप’ में आ रहे हैं। परन्तु हुआ यह कि ‘आप’ के प्रधान छोटेपुर उससे अलग हो गए। लिहाजा बिखराव के बाद विधानसभा में कुछ ‘आप’ विधायक खैहरा ले उड़ा, कुछ चीमा के साथ रहे, बचे-खुचे कांग्रेस में मिल गए। 2022 के चुनावों में भी स्थिति इससे भिन्न नहीं होगी। पाॢटयों का एक ‘कैडर’ होता है, एक आधार होता है जो उसके कार्यकत्र्ताओं पर खड़ा होता है। ‘आप’ में नेता हैं ‘वर्कर’ नहीं।

भारतीय जनता पार्टी एक अर्से के बाद शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर 2022 के विधानसभा चुनाव लडऩे जा रही है। पंजाब की 117 सीटों पर लडऩे-लड़ाने की उसमें कुव्वत है, बशर्ते 2022 के चुनाव आने से पहले-पहले ‘किसान आंदोलन’ का कोई हल निकल आए तो निश्चय ही भाजपा अकेले 2022 के चुनावों का रुख बदल सकती है। यह हकीकत है कि इस किसान आंदोलन को शिरोमणि अकाली दल, आप पार्टी और कांग्रेस ने खूब हवा दी है, परन्तु चुनाव में किसान किस तरफ मुड़ेंगे, किस पार्टी की पीठ ठोकेंगे, कहा नहीं जा सकता। 

किसानों को भी यह विचार करना चाहिए कि पंजाब में भाजपा को भी अपना मत लोगों के सामने रखने का अधिकार है। तीनों कृषि कानूनों को लागू करवाने या रद्द करवाने में पंजाब भाजपा की कोई भूमिका नहीं। किसानों को अपनी बात रखने का अधिकार है तो भाजपा को लोगों के पास जाने का हक क्यों नहीं? यही सोच शिअद, आप पार्टी और कांग्रेस में आनी चाहिए कि भाजपा कार्यकत्र्ताओं, नेताओं के घेराव, धरने या मारपीट से लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह सकता। ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे।-मा.मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री पंजाब) 

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