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66 वर्षीय व्यक्ति की जटिल रीढ़ की बीमारी का फोर्टिस मोहाली में न्यूरो-नेविगेशन व न्यूरो-मॉनिटरिंग के माध्यम से सफल उपचार

Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 29 May, 2025 09:16 AM

complex spinal disease successfully treated with neuro navigation

इलाज में देर होने पर हो सकती थी पैरों में स्थायी कमजोरीया लकवा

चंडीगढ़। फोर्टिस अस्पताल मोहाली के न्यूरोसर्जरी (ब्रेन व स्पाइन) विभाग ने 66 वर्षीय मरीज को एक नई ज़िंदगी दी है, जो पिछले छह महीनों से गंभीर कमर दर्द और साइटिका (साइऐटिक नस में चोट के कारण पीठ में सुन्नता व पैरों में दर्द) से पीड़ित था। इस मरीज का इलाज अत्याधुनिक न्यूरो-नेविगेशन और न्यूरो-मॉनिटरिंग तकनीकों से सफलतापूर्वक किया गया। अगर इलाज में देरी होती, तो मरीज की हालत और बिगड़ सकती थी, जिससे उसके पैरों में स्थायी कमजोरी या लकवा भी हो सकता था। 

न्यूरो-नेविगेशन एक कंप्यूटर- असिस्टेड सर्जरी तकनीक है, जो सर्जन को रीढ़ की हड्डी के भीतर सटीकता से ‘नेविगेट’ करने और अत्यंत सटीक हस्तक्षेप (इंटरवेंशन) करने की सुविधा देती है। 
न्यूरो-मॉनिटरिंग एक ऐसी तकनीक है, जो सर्जन को रीढ़ की हड्डी की कार्यप्रणाली का वास्तविक समय (रियल-टाइम) में मूल्यांकन करने में मदद करती है, जिसमें तंत्रिका जड़ें, मोटर व सेंसरी ट्रैक्ट्स शामिल होते हैं। इन दोनों तकनीकों की मदद से सर्जरी के बाद होने वाली न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं से बचा जा सकता है। 
पिछले छह महीनों से 66 वर्षीय मरीज को गंभीर कमर दर्द की शिकायत थी, जिससे उसकी चलने-फिरने की क्षमता प्रभावित हो गई थी। साथ ही, दोनों जांघों और पैरों में दर्द फैल रहा था और उसे पेशाब पर नियंत्रण नहीं रह गया था। 

मरीज ने फोर्टिस अस्पताल मोहाली के न्यूरो-स्पाइन सर्जरी विभाग के एडिशनल डायरेक्टर डॉ. हरसिमरत बीर सिंह सोढी से परामर्श लिया। उनकी लम्बर स्पाइन की एमआरआई जांच में यह सामने आया कि एल4 से एस1 तक की रीढ़ की हड्डियों में गंभीर तंत्रिका दमन (न्यूरल कम्प्रेशन) हो रहा था, और हड्डियाँ एक-दूसरे पर फिसल रही थीं। यही स्थिति कमर दर्द, पैरों में दर्द (साइटिका), सुन्नता, झनझनाहट और कमजोरी का कारण बन रही थी। अगर इलाज में और देर होती, तो मरीज के दोनों पैर कमजोर हो सकते थे और वह बिस्तर पर सीमित हो जाता। 

डॉ. सोढी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने मरीज का ऑपरेशन न्यूरो-नेविगेशन और न्यूरो-मॉनिटरिंग तकनीकों के माध्यम से किया। लगभग तीन घंटे चली इस सर्जरी में रीढ़ की नलिका और तंत्रिकाओं का पूरी तरह से सर्जिकल डी-कंप्रेशन (दबाव मुक्ति) किया गया, जिससे तंत्रिकाओं पर बना दबाव हटाया गया और स्पाइनल फिक्सेशन (रीढ़ की हड्डी को स्थिर करना) भी सफलतापूर्वक किया गया। सर्जरी के बाद मरीज की रिकवरी बेहद सहज रही और उन्हें पांच दिन में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अगले 3-4 महीनों की गहन फिजियोथेरेपी के बाद मरीज का फुट ड्रॉप भी ठीक हो गया और वह अब बिना किसी सहारे के स्वतंत्र रूप से चलने-फिरने में सक्षम हैं। फिलहाल मरीज को पेशाब की नली की ज़रूरत नहीं है और वह सामान्य जीवन जी रहे हैं। 

इस मामले पर चर्चा करते हुए डॉ. सोढी ने कहा,कि यह सर्जरी फोर्टिस अस्पताल मोहाली में उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीकों जैसे न्यूरो-नेविगेशन, न्यूरो-मॉनिटरिंग और हाई-एंड माइक्रोस्कोप की मदद से की गई। सर्जरी के दौरान नर्व मॉनिटरिंग के ज़रिये दबाव में आई तंत्रिकाओं की स्थिति की लगातार निगरानी की गई, जिससे आसपास की असंबंधित नसों को अनजाने में होने वाले नुकसान से बचाया जा सका। वहीं, न्यूरो-नेविगेशन की सहायता से रीढ़ की हड्डी में स्क्रू अत्यंत सटीकता के साथ लगाए गए, जिससे स्पाइनल कॉर्ड को किसी प्रकार की अतिरिक्त क्षति का कोई जोखिम नहीं रहा। इन सभी कारकों की वजह से मरीज को उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त हुए।”

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