Edited By ,Updated: 27 Jan, 2016 03:06 PM
एक बार जर्मन विचारक ओबरलीन कहीं जा रहे थे कि रास्ते में ओलों के साथ तेज बारिश होने लगी। वे ओलों की चपेट में आकर बेहोश होकर गिर पड़े। जब तूफान शांत हुआ तो उधर से गुजर रहे एक किसान ने ओबरलीन को देखा तो उन्हें उठाकर अपने घर ले आया और उनका इलाज किया।
एक बार जर्मन विचारक ओबरलीन कहीं जा रहे थे कि रास्ते में ओलों के साथ तेज बारिश होने लगी। वे ओलों की चपेट में आकर बेहोश होकर गिर पड़े। जब तूफान शांत हुआ तो उधर से गुजर रहे एक किसान ने ओबरलीन को देखा तो उन्हें उठाकर अपने घर ले आया और उनका इलाज किया। होश आने पर अपने को अनजान जगह पर देखकर ओबरलीन सब कुछ समझ गए। उन्होंने किसान से कहा, भाई आज आप ने मुझे नई जिंदगी दी है। मेरी इच्छा है कि आपको कोई उपहार दूं।
किसान ने कहा, ईनाम किस बात का। मैंने तो कोई अनोखा काम किया ही नहीं, जो किया वह इंसानियत के नाते सभी को करना चाहिए। ईनाम से तो इंसानियत मर जाएगी।
ओबरलीन ने याचना की, फिर भी कोई चीज देना चाहता हूं।
किसान ने कहा यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो यह वचन दीजिए कि आप भी किसी को संकट में देखकर उसकी सहायता अवश्य करेंगे। ओबरलीन ने उसे वचन दिया।
फिर कहा, आप अपना नाम तो बताओ।
किसान बोला, नाम में क्या रखा है। मुझे अनाम ही रहने दो।
ओबरलीन ने कहा, मैं आपके बारे में लोगों को बताऊंगा।
उसने कहा, यही तो मैं नहीं चाहता। ओबरलीन को बोध हुआ कि जो व्यक्ति अनाम रहकर यश, प्रशंसा से दूर परोपकार करता है, सच्चे अर्थों में वही समाजसेवी होता है।