Adi Shankaracharya Jayanti: आदि श्री शंकराचार्य द्वारा बताए मार्ग को आज भी अपनाए है हिंदू समाज

Edited By Updated: 01 May, 2025 06:29 AM

adi shankaracharya jayanti

Adi Shankaracharya birth anniversary: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि श्रीशंकराचार्य का जन्म हुआ। सनातन संस्कृति के उत्थान और हिंदू वैदिक सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का श्रेय आदि गुरु शंकराचार्य को दिया जाता है। विद्वान इन्हें भगवान शिव...

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Adi Shankaracharya birth anniversary: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि श्रीशंकराचार्य का जन्म हुआ। सनातन संस्कृति के उत्थान और हिंदू वैदिक सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का श्रेय आदि गुरु शंकराचार्य को दिया जाता है। विद्वान इन्हें भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। भगवान शिव द्वारा कलियुग के प्रथम चरण में अपने चार शिष्यों के साथ जगदगुरु आचार्य शंकर के रूप में अवतार लेने का वर्णन पुराण-शास्त्रों में भी वर्णित है।

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कूर्म पुराण के अनुसार कलि काल में देवों के देव महादेव मनुष्यों के उद्धार के लिए अपने भक्तों के हित की कामना से धर्म की प्रतिष्ठा के लिए विविध अवतारों को ग्रहण करेंगे। वे शिष्यों को वेद प्रतिपादित सर्व वेदान्त सार ब्रह्म ज्ञान रूप मोक्ष धर्मों का उपदेश करेंगे। जो जिस किसी भी प्रकार उनका सेवन करते हैं वे कलिप्रभाव के दोषों को जीत कर परम पद को प्राप्त करते हैं। 

वेद-शास्त्रों के ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उन्होंने देश भर की यात्रा की और जनमानस को हिंदू वैदिक सनातन धर्म तथा उसमें वर्णित संस्कारों से अवगत कराया। उनके दर्शन ने सनातन संस्कृति को एक नई पहचान दी और भारतवर्ष के कोने-कोने तक उन्होंने लोगों को वेदों के महत्वपूर्ण ज्ञान से अवगत कराया। इससे पहले यह भ्रामक प्रचार था कि वेदों का कोई प्रमाण नहीं है। 

आद्य शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि आठ वर्ष की आयु में उन्होंने चार वेदों का ज्ञान, बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया तथा सोलह वर्ष की आयु में उपनिषद आदि ग्रन्थों के भाष्यों रचना की। इन्होंने भारतवर्ष के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी  ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं। ये चारों स्थान हैं- ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और पुरी गोवर्धन पीठ। आदि शंकराचार्य जी ने भगवद् गीता तथा ब्रह्म सूत्र पर शंकर भाष्य के साथ ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा।

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उन्होंने अनुभव किया कि ज्ञान की अद्वैत भूमि पर जो परमात्मा निर्गुण निराकार ब्रह्म है, वही द्वैत की भूमि पर सगुण साकार है। उन्होंने निर्गुण और सगुण दोनों का समर्थन करके निर्गुण तक पहुंचने के लिए सगुण की उपासना को अपरिहार्य मार्ग माना। जहां उन्होंने अद्वैत मार्ग में निर्गुण बह्म की उपासना की, वहीं उन निर्गुण ब्रह्म की सगुण साकार रूप में उन्होंने भगवान शिव, मां पार्वती, विघ्नहर्ता गणेश, तथा भगवान विष्णु आदि के भक्तिरस पूर्ण स्तोत्रों की रचना कर उपासना की। 

इस प्रकार आदि शंकराचार्य जी को सनातन धर्म को पुन: स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जीव की मुक्ति के लिये ज्ञान आवश्यक है। शंकराचार्य जी का जीवनकाल सिर्फ 32 वर्ष का था। इस छोटी सी उम्र में ही उन्होंने सनातन परंपराओं तथा आदि सनातन संस्कृति की व्यवस्थाओं को पुन: स्थापित कर वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की। उनके द्वारा निर्धारित की गई व्यवस्था आज भी संतों और हिंदू समाज का मार्गदर्शन करती है।

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भारतीय संस्कृति के विकास एवं संरक्षण में आद्य शंकराचार्य का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने भारतीय संस्कृति तथा भारत राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया। 

श्रुति स्मृति पुराणानाम् आलयं करुणालयम। नमामि भगवत्पाद शंकरं लोक शंकरं॥

वेद, स्मृति, और पुराणों के आश्रय स्थान भगवत्पाद आदि शंकराचार्य जी के नाम से विख्यात करुणामयी चरणों का मैं वंदन करता हूं।  

 

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