ज्योतिष की राय: शुभ मुहूर्त का ऋण ही होता है शुभकारी

Edited By ,Updated: 04 May, 2017 12:46 PM

astrological opinion on finance

लोग अपनी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति, मकान बनाने, बालकों की शिक्षा, विवाह, चिकित्सा, व्यापार आदि कार्यों के लिए ऋण लिया करते हैं परंतु

लोग अपनी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति, मकान बनाने, बालकों की शिक्षा, विवाह, चिकित्सा, व्यापार आदि कार्यों के लिए ऋण लिया करते हैं परंतु अनेक बार ऐसी परिस्थिति बन जाती है कि ऋण लेने वाला ऋण चुकाना चाहता है किन्तु भारी घाटे या अन्य कारणों से ऋण चुकता नहीं हो पाता। यह स्थिति ऋण लेने वाले तथा देने वाले दोनों के लिए ही कष्टप्रद एवं क्षोभकारी हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसके दो कारण हैं। पहला कारण ऋण ग्रहण करने वाले की ग्रह दशा का खराब होना तथा दूसरा कारण ऋण लेते समय शुभ मुहूर्त का न होना। ऋण के लेन-देन के समय उचित मुहूर्त का होना परमावश्यक है अन्यथा परिणाम भयंकर होते हैं।


कृष्णपक्ष की द्वितीया, तृतीया, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी तथा एकादशी, द्वादशी तिथियों तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी तथा त्रयोदशी तिथि हो तथा इन तिथियों में सोमवार, वीरवार या शनिवार हो साथ ही अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य हस्त, चित्रा, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा तथा रेवती आदि में से कोई भी एक नक्षत्र हो तो ऐसे मुहूर्त में लिया गया ऋण शीघ्र ही तथा आसानी से चुकता हो जाता है।


बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों या सरकार आदि से ऋण लेने के लिए आवेदन पत्र उपरोक्त मुहूर्तों में से किसी एक मुहूर्त में देना चाहिए। इन मुहूर्तों में आवेदन देने से ऋण स्वीकृति की संभावना काफी बढ़ जाती है तथा ऋण चुकता भी समय पर हो जाता है।
ब्याज कमाने के उद्देश्य से जब कोई व्यक्ति, संस्था या साहूकार रुपया उधार देता है तब उसे भी कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, उभयपक्षों की द्वितीया, तृतीया, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की त्रयोदशी एव पूर्णिमा तिथि का ही उपयोग करना चाहिए। उपरोक्त तिथियों में अश्विनी, पुनर्वसु, चित्रा, अनुराधा, मृगशिरा, पुष्य, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा तथा रेवती आदि में से कोई एक नक्षत्र हो तो बहुत ही अच्छा माना जाता है। शनिवार, वीरवार, शुक्रवार तथा सोमवार का दिन उधार या ऋण देने के लिए अच्छा माना जाता है।


धन के लेन-देन, जमा संग्रह आदि के लिए मंगलवार, संक्रांति का दिन, संक्रांति युक्त रविवार का दिन, मूल, आद्र्रा, ज्येष्ठा, विशाखा, कृत्तिका, धु्रवसंज्ञक नक्षत्र अर्थात उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा तथा उत्तराभाद्रपद एवं रोहिणी आदि नक्षत्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

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