धार्मिक अनुष्ठानों के बाद क्यों छिड़का जाता है शंख में रखा जल ?

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Dec, 2021 09:34 AM

benefits of shankha

धर्मग्रंथों ने शंख को विजय, सुख, समृद्धि के साथ-साथ यश देने वाला भी बताया गया है। तांत्रिक पूजा के दक्षिणावर्ती शंख का विशेष माहात्म्य है। अथर्ववेद के चौथे कांड में ‘शंखमणि सूक्त’ के अंतर्गत शंख की महिमा का

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Benefits of Shankha: धर्मग्रंथों ने शंख को विजय, सुख, समृद्धि के साथ-साथ यश देने वाला भी बताया गया है। तांत्रिक पूजा के दक्षिणावर्ती शंख का विशेष माहात्म्य है। अथर्ववेद के चौथे कांड में ‘शंखमणि सूक्त’ के अंतर्गत शंख की महिमा का वर्णन है। शंख को रक्षक, अज्ञान और निर्धनता को दूर करने वाला, आयुवद्र्धक तथा राक्षसों और भूत-प्रेतों को दूर करने वाला कहा गया है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी शंख का महत्व है ही, अब वैज्ञानिकों ने भी इसके महत्व को स्वीकार कर लिया है।

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वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक के विषाणु या तो नष्ट हो जाते हैं या मूर्च्छित हो जाते हैं। शंख फूंकने से फेफड़े मजबूत होते हैं और हृदय से संबंधित कोई रोग भी नहीं होता है। बांझपन से ग्रस्त स्त्री अगर नियमित रूप से इसमें भरे जल का सेवन करे तो उसके संतानवती होने की संभावना प्रबल होती है। महाभारत में युद्ध के आरंभ, युद्ध के समाप्त होने आदि अवसरों पर शंख-ध्वनि करने का वर्णन आता है। इसके साथ ही पूजा, आरती, कथा, धार्मिक अनुष्ठानों आदि के आरंभ व अंत में भी शंख-ध्वनि करने का विधान है।

इसके पीछे धार्मिक आधार तो है ही, वैज्ञानिक रूप से भी इसकी प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है। इस मामले में वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख ध्वनि के प्रभाव से सूर्य की किरणें बाधक होती हैं। अत: प्राय: व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख-ध्वनि करने का नियम है। इससे पर्यावरण शुद्ध रहता है।
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अथर्ववेद के अनुसार शंखेन हत्वा रक्षांसि अर्थात शंख से सभी राक्षसों का नाश होता है और यजुर्वेद के अनुसार अवरस्परायशखध्वम् अर्थात युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति आवश्यक है। यजुर्वेद में यह भी कहा गया है कि यस्तु शंखध्वनि कुर्यात्पूजाकाले, विशेषत: वियुक्त: सर्वपापेन विष्णुनां सह मोदते अर्थात पूजा के समय जो व्यक्ति शंख ध्वनि करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार शंख फूंकने वाले को सांस से संबंधित रोग जैसे-दमा आदि एवं फेफड़ों के रोग नहीं होते। रुक-रुक कर बोलने व हकलाने वाले अगर नित्य शंख-जल का पान करें, तो उन्हें लाभ मिल सकता है। वास्तव में मूकता व हकलापन दूर करने के लिए शंख-जल एक उपयोगी औषधि है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख में जल भरकर देवस्थान में रखने और इसे घर के आसपास छिड़कने से वातावरण शुद्ध रहता है।

धार्मिक अनुष्ठानों के पश्चात वहां उपस्थित लोगों पर शंख में रखा हुआ जल क्यों छिड़का जाता है ?
इसका उत्तर है कि शंख में गंधक, फास्फोरस एवं कैल्शियम जैसे पदार्थ काफी मात्रा में रहते हैं। अत: शंख में जल रख कर कुछ समय तक छोड़ देने से इसमें रखा जल रोगाणुरहित हो जाता है। यही कारण है कि वह जल लोगों के ऊपर छिड़का जाता है।

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