Bhishma Panchak: भीष्म पितामह के नाम से जुड़ा है पंचक व्रत का शुभ काल, पढ़ें कथा

Edited By Updated: 30 Oct, 2025 02:03 PM

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Bhishma Panchak Katha: हिंदू धर्म में पंचक काल को सामान्यतः अशुभ माना जाता है क्योंकि यह 5 दिनों की ऐसी अवधि होती है जिसमें शुभ कार्यों की मनाही होती है। लेकिन कार्तिक मास का पंचक जिसे “भीष्म पंचक” या “विष्णु पंचक” कहा जाता है अत्यंत शुभ, पवित्र और...

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Bhishma Panchak Katha: हिंदू धर्म में पंचक काल को सामान्यतः अशुभ माना जाता है क्योंकि यह 5 दिनों की ऐसी अवधि होती है जिसमें शुभ कार्यों की मनाही होती है। लेकिन कार्तिक मास का पंचक जिसे “भीष्म पंचक” या “विष्णु पंचक” कहा जाता है अत्यंत शुभ, पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इन 5 दिनों में भगवान विष्णु की विशेष पूजा, व्रत और दान का विधान है।

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भीष्म पंचक का पौराणिक प्रसंग — महाभारत से जुड़ी कथा
भीष्म पंचक का सीधा संबंध महाभारत के परम प्रतिज्ञावान योद्धा भीष्म पितामह से है। कथा के अनुसार जब कुरुक्षेत्र का महायुद्ध समाप्त हुआ, तब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे थे। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक देह त्याग न करने का संकल्प लिया था।

उस काल में भगवान श्रीकृष्ण, पांडवों सहित उनसे मिलने आए। उन्होंने धर्म, नीति, भक्ति और मोक्ष के रहस्यों पर विस्तृत उपदेश दिया, जिसे बाद में शांति पर्व और अनुशासन पर्व के रूप में महाभारत में लिपिबद्ध किया गया। यही वे 5 पवित्र दिन थे कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक, जब भीष्म पितामह ने उपवास, ध्यान और भगवान विष्णु की आराधना की। इन्हीं दिनों में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से मोक्ष की याचना की और अंततः कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन उन्होंने देह त्याग कर परमधाम की प्राप्ति की।

भीष्म पंचक का आध्यात्मिक रहस्य
धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि चातुर्मास के चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन जब भगवान विष्णु जागते हैं, उसी दिन से मांगलिक और शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है। इसी दिन से भीष्म पंचक व्रत आरंभ होता है, जो देव जागरण और मोक्ष साधना का अद्भुत संगम है।

भीष्म पितामह ने इस काल में भगवान विष्णु के पंचरूपों केशव, माधव, नारायण, गोविंद और विष्णु की उपासना की।
इसलिए इस व्रत को विष्णु पंचक भी कहा गया है।

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शास्त्रों में बताए गए भीष्म पंचक के पुण्य
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस पंचक काल में उपवास, जप, दान और दीपदान करता है, उसे अकथनीय पुण्य की प्राप्ति होती है। पद्मपुराण और विष्णुधर्मोत्तरपुराण में वर्णित है कि भीष्म पंचक व्रत से किए गए पुण्यकर्म का फल हजार गुना बढ़ जाता है।

यह व्रत व्यक्ति को पापमुक्त करता है, मन को शुद्ध करता है और आत्मा को विष्णु-सायुज्य (मोक्ष) की प्राप्ति करवाता है।
जो व्यक्ति कार्तिक मास का व्रत नहीं कर पाता, वह केवल इन पाँच दिनों का व्रत रखकर पूरे मास के व्रत का फल पा सकता है।

भीष्म पंचक का पालन कैसे करें
संकल्प: कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर “मैं भीष्म पंचक व्रत का पालन करूंगा” ऐसा संकल्प लें।
उपवास: पांचों दिन केवल सात्त्विक आहार, फल, दूध या हविष्य ग्रहण करें।

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भीष्म पंचक पूजा-विधि:
भगवान विष्णु और भीष्म पितामह की पूजा करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
दीपदान और तुलसी पूजन करें।
दान: वस्त्र, अन्न, दीप, और स्वर्णदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भीष्म पंचक का उपसंहार, मोक्ष का मार्ग
भीष्म पंचक केवल उपवास का पर्व नहीं है, यह धर्म, नीति, और आत्मबोध की साधना का प्रतीक है।
यह काल हमें भीष्म पितामह के अदम्य संयम, सत्य और भक्ति की प्रेरणा देता है।

जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इन 5 दिनों का व्रत करता है, उसे भगवान विष्णु की अनुकंपा प्राप्त होती है, उसके जीवन से दुःख दूर होते हैं, और मृत्यु के बाद आत्मा विष्णुलोक की यात्रा करती है।

भीष्म पंचक व्रतं ये तु चरन्ति श्रद्धयान्विताः। ते यान्ति विष्णुलोकं तु न पुनर्जन्म लभन्ति च॥
जो भक्त श्रद्धा से भीष्म पंचक व्रत करते हैं, वे विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं और पुनर्जन्म से मुक्त हो जाते हैं।

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