Edited By Prachi Sharma,Updated: 07 Jan, 2024 08:32 AM
जहां लक्ष्मी (धन) का निवास होता है वहां सहज ही सुख-सम्पदा आ जुड़ती है। जिस राजा का राजकोष धन-धान्य से भरपूर होता है, उसकी प्रजा भी
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जहां लक्ष्मी वहां ‘सुख-सम्पदा’
अर्थसम्पत् प्रकृतिसम्पदं करोति।
भावार्थ: जहां लक्ष्मी (धन) का निवास होता है वहां सहज ही सुख-सम्पदा आ जुड़ती है। जिस राजा का राजकोष धन-धान्य से भरपूर होता है, उसकी प्रजा भी सहज और स्वाभाविक रूप से सम्पन्न हो जाती है। हर तरह का सुख-वैभव उसे प्राप्त हो जाता है।
शासक को स्वयं ‘योग्य’ बनकर ‘योग्य प्रशासकों’ की सहायता से शासन करना चाहिए
सम्पाद्यात्मानमन्विच्छेत् सहायवान्।
भावार्थ : जो राजा स्वयं को सर्वगुण सम्पन्न बनाने का प्रयत्न करता है वह बहुत शीघ्र योग्य सहायकों को एकत्र करके राज्य का संचालन करने में समर्थ हो जाता है। यदि वह ऐसा न करे तो चाटुकार कर्मचारी यथाशीघ्र ऐसे राजा को सत्ताच्युत बना देते हैं।
इंद्रियों पर विजय से मिलता है सुख
जितात्मा सर्वार्थै: संयुज्येत्।
भावार्थ: आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है। जो राजा अपनी समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त करके अपनी आत्मा पर नियंत्रण कर लेता है, उसे सभी तरह की सुख-संपत्ति सुलभ हो जाती है।
‘विनम्रता’ है इंद्रियों पर विजय का आधार
इंद्रियजयस्य मूलं विनय:।
भावार्थ : जिस राजा ने विनम्रता के मर्म को समझकर विनम्र रहना सीख लिया और अपने सभी आचार-विचार में विनम्रता का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया है, उस राजा को स्वत: ही इंद्रियों पर विजय प्राप्त हो जाती है। वह अपने विनम्र स्वभाव से सभी का हृदय जीत लेता है।