एक फूलों की माला ने शास्त्रार्थ में शंकराचार्य को दिलाई थी जीत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Nov, 2017 09:50 AM

debate between mandana mishra and adi shankara

आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच 16 दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। इस शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र की धर्मपत्नी देवी भारती को निर्णायक बनाया गया था। हार-जीत का निर्णय होना बाकी था।

आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच 16 दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। इस शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र की धर्मपत्नी देवी भारती को निर्णायक बनाया गया था। हार-जीत का निर्णय होना बाकी था। इसी बीच देवी भारती को किसी आवश्यक कार्य से कुछ समय के लिए वहां से बाहर जाना पड़ गया। जाने से पहले देवी भारती ने दोनों ही विद्वानों के गले में एक-एक फूल माला डालते हुए कहा कि ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में आपकी हार-जीत का फैसला करेंगी। यह कहकर देवी भारती वहां से चली गईं। 

 

शास्त्रार्थ की प्रक्रिया आगे चलती रही। कुछ देर बाद देवी भारती अपना कार्य पूरा करके वापस लौट आईं। उन्होंने अपनी निर्णायक नजरों से शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी-बारी देखा तथा अपना निर्णय सुना दिया। उनके फैसले के अनुसार आदि शंकराचार्य विजयी घोषित किए गए और उनके पति मंडन मिश्र की पराजय हुई थी। सभी दर्शक हैरान हो गए कि बिना किसी आधार के इस विदुषी ने कैसे अपने पति को पराजित करार दे दिया। 

 

एक विद्वान ने देवी भारती से नम्रतापूर्वक जिज्ञासा की, ‘‘हे देवी, आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही कहीं और चली गई थीं, फिर वापस लौटने पर आपने ऐसा फैसला कैसे दे दिया।’’ देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया, ‘‘जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है, जब उसे हार की झलक दिखाई दिखने लगती है तो स्वाभाविक रूप से वह कु्रद्ध हो उठता है। आप लोग गौर करें कि मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध के ताप से सूख चुकी है जबकि शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भांति ताजा हैं। इससे ज्ञात होता है कि इस शास्त्रार्थ में आदि शंकराचार्य की ही विजय हुई है।’’ विदुषी देवी भारती की यह बात सुनकर उनके फैसले पर सवाल उठाने वालों का मुंह बंद हो गया।

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