Edited By Jyoti,Updated: 26 Oct, 2021 06:33 PM

संत रमन्ना के आश्रम में अनेक लोग अपनी समस्याएं लेकर आते थे। एक दिन एक जिज्ञासु व्यक्ति आया और संत के पास शीघ्र पहुंचने के लिए उसने अपने जूते जल्दी से उतारने की कोशिश की।
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संत रमन्ना के आश्रम में अनेक लोग अपनी समस्याएं लेकर आते थे। एक दिन एक जिज्ञासु व्यक्ति आया और संत के पास शीघ्र पहुंचने के लिए उसने अपने जूते जल्दी से उतारने की कोशिश की। जूते आसानी से नहीं उतर रहे थे तो क्रोध में उसने किसी तरह पैर पटक कर उन्हें उतारा और तेजी से आश्रम के दरवाजे को धकेल कर संत के पास पहुंच गया।
आते ही उसने संत से कहा, ‘‘बाबा यहां मैं आपसे अपनी समस्या का समाधान जानने आया हूं।’’
संत बोले, ‘‘तुम्हारी समस्या का समाधान तो अस भव है।’’
व्यक्ति आश्चर्य से बोला, ‘‘बाबा, भला मेरी समस्या का समाधान क्यों नहीं हो सकता?’’
उन्होंने कहा, ‘‘तुम ठीक से व्यवहार करना ही नहीं जानते। जो विनम्र नहीं हो सकता, उसका काम भी सफल नहीं होता।’’
व्यक्ति ने पूछा, ‘‘मेरे व्यवहार में क्या दोष है?’’
वह बोले, ‘‘कदम-कदम पर तुम अकारण क्रोध में वस्तुओं का नुक्सान करते हो। तुमने अभी-अभी जूते और दरवाजे पर क्रोध किया है। जाओ, सबसे पहले उन वस्तुओं से माफी मांग कर आओ।’’
वह व्यक्ति हैरानी से बोला, ‘‘बेजान चीजों से माफी मांगू?’’
संत बोले, ‘‘तुम बेजान वस्तुओं के साथ भी सही ढंग से व्यवहार नहीं कर सकते हो और चाहते हो कि ईश्वर तु हारे साथ उचित व्यवहार करें। यदि तुमने इन वस्तुओं को वास्तव में बेजान समझा होता तो तुम इन पर क्रोध ही नहीं करते। जीवन में कई बार विनम्रता से सारी समस्याओं के समाधान अपने आप हो जाते हैं।’’
वह व्यक्ति, उनका आशय समझ गया। उसने उन वस्तुओं के साथ-साथ उसी समय संत से भी माफी मांगी और आगे से हर किसी के साथ विनम्रता से पेश आने का वचन दिया।