इन संकेतों से जानें, आपकी कुंडली में है मांगलिक योग का प्रभाव

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Mar, 2020 07:46 AM

effect of mangalik yoga in your horoscope

जन्म कुंडली में जब मंगल की स्थिति लग्र भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव अष्टम भाव, द्वादश भाव में हो तो मांगलिक योग का निर्माण होता है। दक्षिण भारतीय मत के अनुसार द्वितीय भाव में मंगल होने पर भी

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जन्म कुंडली में जब मंगल की स्थिति लग्र भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव अष्टम भाव, द्वादश भाव में हो तो मांगलिक योग का निर्माण होता है। दक्षिण भारतीय मत के अनुसार द्वितीय भाव में मंगल होने पर भी मांगलिक योग बनता है। सभी नौ ग्रहों में मंगल को सर्वाधिक उत्तेजक ग्रह का स्थान दिया गया है। मंगल वैधव्य, हिंसा, उत्पीडऩ आदि विषयों का कारक ग्रह है।

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सप्तम भाव से विवाह के अतिरिक्त दाम्पत्य सुख, प्रेम प्रसंग, वासनात्मक स्थितियां व परिस्थितियां, जीवनसाथी का आचार-विचार, स्वभाव, स्वास्थ्य, योग्यता, व्यवसाय स्वरूप, शिक्षा एवं वैवाहिक जीवन की अवधि का विचार होता है। स्त्री वर्ग के लिए अष्टम भाव का महत्व भी सप्तम भाव से कम नहीं है। अष्टम भाव से कन्या के मांगल्य का विचार किया जाता है। अर्थात पति के साथ का सुख, यह कहना गलत नहीं होगा कि स्त्री के लिए सप्तम भाव का महत्व अष्टम भाव से भी अधिक होता है।

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मांगलिक योग का प्रभाव 
यदि किसी जातक की कुंडली में मांगलिक योग बन रहा हो तो ऐसे जातक को निम्न स्थितियों का सामना जीवन में प्राय: करना पड़ता है- 
जातक वर या कन्या का विवाह देर से होना।
जातक की आयु कम होना।
पति-पत्नी की आपस में तकरार होना।
दोनों का आपस में मतभेद होना और दोनों में संबंध विच्छेद होना।

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ज्योतिष नियमों के अनुसार मंगल की दृष्टि विच्छेदक मानी जाती है। प्रथम, चतुर्थ तथा द्वादश स्थानों में स्थित मंगल की दृष्टि, सप्तम भाव पर पडऩे के कारण वैवाहिक सुख में बाधक मानी जाती है। अष्टम स्थान पाप विमुक्त होकर ही विवाह के लिए मंगलकारी होता है। इसी तर्क के अनुसार दक्षिण भारत में द्वितीय स्थानस्थ मंगल को मांगलिक दोषकारक माना जाता है। कल्याण वर्मा सारावली में सप्तम भावगत शनि तथा मंगल को दांपत्यनाशक मानते हैं। मंगल स्थिति द्वादश भाव को भी उन्होंने विवाह सुखनाशक कहा है।
जन्मांग में 1, 2, 4, 7, 8, 12 वें भाव के अतिरिक्त इन भावों से मंगल का दृष्टि सम्बन्ध होने पर भी वैवाहिक सुख प्रभावित होता है। इन भावों पर शनि, राहू व केतु की उपस्थिति या दृष्टि से भी गृहस्थ जीवन सामान्य नहीं रहता है। विवाह सूत्र बंधक की मधुरता के लिए मंगली दोष का संतुलन अति आवश्यक है। यदि मंगल नीच राशिगत हो, तो उसका पूर्ण अरिष्ट प्रभाव होता है, यदि शत्रु राशिगत हो, तो 90 प्रतिशत, यदि सम राशि हो तो 80 प्रतिशत, यदि मित्र राशि हो तो 70 प्रतिशत, यदि स्वराशिगत हो तो 60 प्रतिशत और उच्च राशि होने पर मंगल का अरिष्ट प्रभाव 50 प्रतिशत होता है।

मांगलिक योग की समाप्ति 
अत: वर कन्या की कुंडलियों का मिलान करते समय उनके सुखी एवं सम्पन्न दाम्पत्य जीवन के लिए, केवल भाव स्थिति पर आधारित मंगल, या मांगलिक दोष पर ही अत्यधिक बल न देते हुए, मेलापक संबंधी अन्य तत्वों जैसे मंगल के साथ अन्य ग्रहों का योग, सप्तमेश आदि, भावेश ग्रह की स्थिति, सप्तम भाव पर अन्य शुभ-अशुभ ग्रहों की दृष्टि तथा विवाह सुखकार गुरु-शुक्र-चंद्र आदि और नवांश कुंडली में भी उक्त ग्रहों की स्थिति का विवेचन करना चाहिए। मुहूर्त संग्रह दर्पण में भी कहा गया है कि वर, अथवा कन्या में किसी एक की कुंडली में मांगलिक दोष हो तथा दूसरे की कुंडली में अरिष्ट योगकारक शनि या अन्य कोई पाप ग्रह विद्यमान हो, तो मंगल दोष कम हो जाता है।

मांगलिक दोष वर-वधू के संबंधों में तनाव व बिखराव, कुटुम्ब वृद्धि में परेशानी देता है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में एक मांगलिक को दूसरे मांगलिक से ही विवाह करना चाहिए। यदि वर और वधू दोनों मांगलिक होते हैं तो यह योग समाप्त माना जाता है। वैदिक पूजा-प्रक्रिया के द्वारा इसकी तीव्रता को नियंत्रित किया जा सकता है। मंगल ग्रह की पूजा द्वारा मंगल देव को प्रसन्न करके मंगल द्वारा जनित विनाशकारी प्रभावों को शांत किया जाता है। 

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