मानो या न मानो: ऐसे पैदा हुई थी गांधारी की 101 संतानें

Edited By Updated: 02 Jun, 2018 12:15 PM

भगवान वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में सम्पूर्ण धर्म, दर्शन, समाज, संस्कृति, युद्ध और ज्ञान-विज्ञान की बातें शामिल हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महाभारत में नहीं है। साजिशों से भरी इस दास्तां के गर्भ में बहुत सारे रहस्य समाए हुए हैं।

भगवान वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में सम्पूर्ण धर्म, दर्शन, समाज, संस्कृति, युद्ध और ज्ञान-विज्ञान की बातें शामिल हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महाभारत में नहीं है। साजिशों से भरी इस दास्तां के गर्भ में बहुत सारे रहस्य समाए हुए हैं। जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं की वाकई उस समय पर ऐसा हुआ होगा? जैसे गांधारी की 101 संतानों से जुड़ा हैरान कर देने वाला तथ्य। 

आमतौर पर कोई भी महिला एक या जुड़वा बच्चों को जन्म देती है। बहुत कम देखने को मिलता है की 3-4 या 5 बच्चों का जन्म एकसाथ हुआ हो। महाभारत की पात्र गांधारी ने 100 पुत्रों और एक पुत्री को एकसाथ जन्म दिया था। उनकी सबसे बड़ी संतान दुर्योधन महाभारत में खलनायक के रूप में जानी-पहचानी जाती है। उनके पुत्रों को कौरवों के नाम से जाना जाता है। 

गंधार नरेश की पुत्री गांधारी शिव भक्त थी। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें 100 पुत्रों की माता बनने का वरदान दिया था। गांधारी का विवाह विचित्रवीर्य के पुत्र धृतराष्ट्र से हुआ। जो जन्म से ही नेत्रहीन थे, जब गांधारी को इस बात का पता लगा तो उन्होंने नेत्रहीन होकर जीवन जीने की प्रतिज्ञा ली और अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। धृतराष्ट्र चाहते थे कि उनके भाई पाण्डू की संतान होने से पहले उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हो। उस समय ज्येष्ठ पुत्र को राजगद्दी पर बिठाया जाता था। 

गांधारी के गर्भवती होने के 10 महीने गुजरने पर भी उसे संतान पैदा न हुई। पाण्डू की पत्नी कुंती के गर्भ से युधिष्ठिर का जन्म हो गया तो गांधारी को घबराहट होने लगी। उन्होंने अपने पेट पर प्रहार कर गर्भ को गिरा दिया, जिससे गर्भपात हो गया और मांसपिण्ड बाहर निकल आए।

तब हस्तिनापुर में महर्षि व्यास आए उन्होंने गांधारी से कहा, "भगवान शिव का वरदान कभी व्यर्थ नहीं जा सकता। वो मांस का पिंड मेरे पास ले आओ व जल्दी से सो कुंड तैयार करवाओ और उनको घी से भरवा दो।"

व्यास जी ने जल छिड़का, जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये सौ कुण्डों में रखवा दिया गया। कुण्डों को दो वर्ष बाद खोलने का आदेश देकर वह अपने आश्रम चले गये। दो वर्ष के बाद जब कुण्डों को खोला गया तो उसमें से 100 पुत्रों और 1 पुत्री ने जन्म लिया।
 

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