GANESH CHATURTHI SPECIAL: क्यों चुना गणेश जी ने छोटे से मूषक को अपना वाहन?

Edited By Updated: 25 Aug, 2025 06:02 AM

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GANESH CHATURTHI SPECIAL:  जैसे की सब जानते हैं कि 27 अगस्त को बप्पा बड़ी धूमधाम के साथ पधार रहे हैं। बप्पा हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय है। इन्हें ज्ञान और बुद्धि का देवता माना गया है। बप्पा के रूप की बात करें तो उनका रूप जितना सुंदर है।

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GANESH CHATURTHI SPECIAL:  जैसे की सब जानते हैं कि 27 अगस्त को बप्पा बड़ी धूमधाम के साथ पधार रहे हैं। बप्पा हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय है। इन्हें ज्ञान और बुद्धि का देवता माना गया है। बप्पा के रूप की बात करें तो उनका रूप जितना सुंदर है। उतना ही विचित्र भी है। उनका सिर हाथी का, धड़ मानव का, पेट बड़ा है और वाहन एक छोटा सा चूहा है। अक्सर आपके मन में भी यह सवाल आता होगा कि इतने विशाल और ताकतवर गणपति का वाहन इतना छोटा चूहा कैसे हो सकता है? भगवान गणेश जी का वाहन मूषक ऐसे ही नहीं बना। गणेश पुराण के अनुसार, गणेश जी का वाहन हर युग में बदलता रहता है। सतयुग में गणेश जी का वाहन सिंह माना गया है। त्रेता युग में मयूर है, तो वहीं वर्तमान युग यानी कलयुग में उनका वाहन घोड़ा माना जाता है। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर उनकी हर प्रतिमा में मूषक उनके साथ क्यों दिखाई देता है। तो आइए जानते हैं कि मूषक कैसे बना बप्पा का वाहन।  

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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र अपनी सभा में महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे थे। उसी समय वहां क्रौंच नामक गंधर्व भी उपस्थित था। लेकिन सभा की गंभीरता भंग करते हुए उसने अनुचित व्यवहार करना शुरू कर दिया। इसी बीच उसका पैर अनजाने में ऋषि वामदेव को छू गया। इससे ऋषि क्रोधित हो उठे और उन्होंने क्रौंच को श्राप दे दिया कि वह मूषक अर्थात चूहा बन जाएगा। श्राप लगते ही क्रौंच एक विशालकाय मूषक के रूप में परिवर्तित हो गया। ऋषि के श्राप का असर होते ही वह मूषक बेहोश होकर सीधे ऋषि पराशर के आश्रम में जा गिरा। वहां पहुंचते ही उसने उपद्रव मचाना शुरू कर दिया। उसने मिट्टी के बर्तन चकनाचूर कर दिए, वाटिका को उजाड़ दिया और वस्त्रों व ग्रंथों को कुतर डाला। इतना ही नहीं, उसने आश्रम का सारा अन्न भी नष्ट कर दिया। काफी प्रयास के बाद भी जब वो मूषक आश्रम से नहीं निकला तो महर्षि पराशर ने भगवान श्रीगणेश से मदद मांगी। भगवान गणेश ने विशालकाय मूषक को वश में करने के लिए अपना पाश फेंका। पाश को अपनी तरफ बढ़ते देख मूषक भागता हुआ पाताल लोक पहुंच गया। भगवान गणेश का पाश पाताल लोक तक पहुंचकर उस मूषक को खींच लाया और उनके सामने ला खड़ा किया। पाश उसके गले में कस जाने से वह मूर्छित हो गया। जब उसे होश आया तो उसने भयभीत होकर गणेश जी से जीवन दान की प्रार्थना की।

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गणेश जी ने कहा कि तुम मुझसे कोई वर मांग लो। लेकिन मूषक ने अहंकार में कहा – “मुझे किसी वरदान की आवश्यकता नहीं, यदि आप चाहें तो मुझसे कुछ मांग सकते हैं।” उसके गर्वपूर्ण शब्द सुनकर गणेश जी मुस्कुराए और बोले – “तो ठीक है, अब तुम मेरे वाहन बनो।” इसी तरह वह मूषक भगवान गणेश की सवारी बन गया।उसी पल से मूषक गणेश जी का वाहन बन गया लेकिन जैसे ही गणेश जी ने मूषक पर पहली सवारी की तो गणेश जी की भारी भरकम देह से वह दबने लगा। मूषक का घमंड चूर-चूर हो गया और वह गणेश जी से बोला," प्रभु! मुझे माफ कर दें। आपके वजन से मैं दबा जा रहा हूं।"अपने वाहन की प्रार्थना पर गणेश जी ने अपना भार कम कर लिया। इस घटना के उपरांत से ही मूषक गणेश जी का वाहन बनकर उनकी सेवा में लगा गया।

दूसरी कथा
एक समय एक गजमुखासुर नामक एक राक्षस हुआ जिसने अपने बाहुबल से देवी देवताओं को परेशान कर रखा था। गजमुखासुर से परेशान हो सभी देवता भगवान गणेश के पास मदद मांगने गए। जिसके बाद भगवान गणेश और गजमुख सुर का भयंकर युद्ध हुआ। गजमुखासुर ने ये वर प्राप्त कर रखा था कि उसकी मृत्यु किसी भी अस्त्र शस्त्र से नहीं होगी। जब से युद्ध कई दिनों तक चलता रहा तो गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़ गजमुखासुर पर वार किया। जब गजमुखासुर ने देखा की उसकी मृत्यू पास आ गई है, तब उसने एक मूषक का रूप धारण कर लिया और जान बचाने के लिए भागने लगा। तभी बप्पा ने उसे अपने पास बांध लिया। मूषक बना गजमुखासुर श्रीगणेश से क्षमा मांगने लगा। तब श्रीगणेश ने उसे मूषक के रूप में ही अपना वाहन बनाकर जीवनदान दे दिया।

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