Ganesh Idol Trunk Direction: गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही शुभ है गणेश जी की ये मूर्ति

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jan, 2023 02:19 PM

ganesh idol trunk direction

भगवान गणेश देवों के देव भगवान शिव और माता पार्वती के छोटे पुत्र हैं। गणेश जी की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है। वे भगवान विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं परंतु क्या आप जानते हैं कि किस तरफ सूंड वाले श्री

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Ganesh ji trunk direction for home: भगवान गणेश देवों के देव भगवान शिव और माता पार्वती के छोटे पुत्र हैं। गणेश जी की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है। वे भगवान विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं परंतु क्या आप जानते हैं कि किस तरफ सूंड वाले श्री गणेश पूजनीय हैं ? आइए इसी बारे में जानते हैं।

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Right trunk ganesha at home दाईं सूंड : जिस मूर्ति में सूंड के अग्रभाव का मोड़ दाईं ओर हो उसे दक्षिण मूर्ति या दक्षिणाभिमुखी मूर्ति कहते हैं। यहां दक्षिण का अर्थ है दक्षिण दिशा या दाईं बाजू। दक्षिण दिशा यमलोक की ओर ले जाने वाली व दाईं भुजा सूर्य नाड़ी की है। जो यमलोक की दिशा का सामना कर सकता है वह शक्तिशाली होता है व जिसकी सूर्य नाड़ी कार्यरत है वह तेजस्वी भी होता है। इन दोनों अर्थों से दाईं सूंड वाले गणपति को ‘जागृत’ माना जाता है। 

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ऐसी मूर्ति की पूजा विधि के सर्व नियमों का यथार्थ पालन करना आवश्यक है। उसमें सात्विकता बढ़ती है व दक्षिण दिशा में प्रसारित होने वाली रज लहरियों से कष्ट नहीं होता। दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा सामान्य पद्धति से नहीं की जाती। दक्षिण दिशा में यमलोक है, जहां पाप पुण्य का हिसाब रखा जाता है। इसलिए यह बाजू अप्रिय है।

यदि दक्षिण की ओर मुंह करके बैठे या सोते समय दक्षिण की ओर पैर रखें तो जैसी अनुभूति मृत्यु के पश्चात अथवा मृत्यु पूर्व जीवित अवस्था में होती है, वैसी ही स्थिति दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा करने से होने लगती है। विधि विधान से पूजा न होने पर  श्री गणेश रुष्ट हो जाते हैं।

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Left side trunk ganesha बाईं सूंड : जिस मूर्ति में सूंड के अग्रभाव का मोड़ बाईं ओर हो, उसे वाममुखी कहते हैं। वाम यानी बाईं और चंद्र नाड़ी होती है। यह शीतलता प्रदान करती है एवं उत्तर दिशा अध्यात्म के लिए पूरक है। आनंददायक है इसलिए पूजा में अधिकतर वाममुखी गणपति की मूर्ति रखी जाती है।

इन गणेश जी को गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। इन्हें विशेष विधि विधान की जरूरत नहीं। यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं और थोड़े में ही संतुष्ट हो जाते हैं। साथ ही भक्तों को त्रुटियों पर भी क्षमा करते हैं।

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