जानें, कब है श्री गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी

Edited By Updated: 03 Dec, 2019 07:33 AM

geeta jayanti and mokshada ekadashi on december 18

जिस दिन अखिल ब्रह्मांड अधिपति भगवान श्री कृष्ण जी ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर कर्तव्य पथ से विमुख हुए अर्जुन को भगवद् गीता रूपी परम कल्याणप्रद दिव्य ज्ञान का उपदेश दिया वह दिन था मार्गशीर्ष की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी। इसशास्त्रों की बात,...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

जिस दिन अखिल ब्रह्मांड अधिपति भगवान श्री कृष्ण जी ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर कर्तव्य पथ से विमुख हुए अर्जुन को भगवद् गीता रूपी परम कल्याणप्रद दिव्य ज्ञान का उपदेश दिया वह दिन था मार्गशीर्ष की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी। इस वर्ष यह दिन 8 दिसम्बर दिन रविवार पूरे विश्व में श्री गीता जयंती महापर्व एवं श्री गीता ज्ञान यज्ञ पर्व के रूप में मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान के स्वरूप श्री गीता जी का पूजन एवं पाठ होता है। भगवान श्री कृष्ण श्री गीता जी में स्पष्ट करते हैं कि संन्यास कर्मों के परित्याग को नहीं अपितु कर्मफल के परित्याग को कहते हैं।

‘‘अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य:। सन्नयासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय:।।’’

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श्री भगवान अर्जुन से कहते हैं जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है वह संन्यासी तथा योगी है, अग्नि एवं क्रियाओं का त्याग करने वाला संन्यासी अथवा योगी नहीं है। गीता के इस संन्यास को ही योग कहा जाता है जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है न आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी संन्यासी ही है। भगवान यहां स्पष्ट करते हैं कि किसी भी काल में मनुष्य को कर्तव्यों का परित्याग नहीं करना चाहिए। 

भगवद् गीता के षोड्ष अध्याय में भगवान कहते हैं कि कर्तव्य परायण मनुष्य में भय का हमेशा अभाव, अंत:करण की पूर्ण निर्मलता, मन, वाणी और शरीर द्वारा किसी भी प्रकार से किसी को कष्ट न देना, वास्तविकता और प्रिय भाषण, अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का परित्याग, चित्त की चंचलता का अभाव, किसी की भी निंदा आदि न करना, सब भूत प्राणियों में हेतु रहित दया, शास्त्र विरुद्ध आचरण में लज्जा, व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव, क्षमा, धैर्य, शुद्धि किसी में भी शत्रुभाव का न होना तथा अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव इत्यादि दैवीय सम्पदा के लक्षण होते हैं। इसके विपरीत दंभ, घमंड, अभिमान, क्रोध, कठोरता तथा अज्ञान आदि आसुरी सम्पदा से युक्त पुरुष के लक्ष्ण हैं।

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भगवद् गीता के माध्यम से गोविंद भगवान ने अर्जुन को इस आत्मा के शाश्वत रूप का ज्ञान कराया तथा सकाम कर्म को ही जीवात्मा के इस नश्वर संसार में आवागमन का मूल कारण बताया तथा निष्काम कर्मयोग को इस संसार बंधन से मुक्त करने वाला महामंत्र बताया। भगवान कहते हैं कि मैं निराकार, सर्वव्यापी, अजन्मा, अविनाशी होते हुए भी भक्तों के प्रेमवश धर्म की पुनर्स्थापना के लिए इस धरती पर प्रकट होता हूं।

आज सम्पूर्ण विश्व को गीता ज्ञान की परम आवश्यकता है। धर्म के स्वरूप का वास्तविक निरुपण भगवान श्री कृष्ण जी ने गीता जी में किया है, आज सम्पूर्ण विश्व को धर्म के वास्तविक स्वरूप को जानने की परम आवश्यकता है, जो कर्म समाज एवं विश्व के कल्याण की भावना से किए जाते हैं। वहीं धर्म है। जिसमें समाज एवं संसार का अहित है, वह कर्म अधर्म स्वरूप है। 

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श्री गीता जयंती पर हम यह प्रण लें कि श्री गीता जी के शाश्वत ज्ञान को हम सर्वत्र फैलाएं जिससे मानवीय समाज सुख एवं शांति अनुभव करे। विश्व में व्याप्त भय का वातावरण, आपसी वैर भाव समाप्त हो। सम्पूर्ण विश्व एक परिवार तथा एक ही ईश्वर एकेश्वरवाद की सत्ता की भावना से सम्पूर्ण प्राणीमात्र का कल्याण संभव है :

यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥

जहां योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण हैं जहां गांडीव धनुर्धारी अर्जुन हैं वहीं पर श्री विजय, विभूति और अचल नीति है।  

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