Edited By Jyoti,Updated: 22 Nov, 2020 04:16 PM
सनातन धर्म व हिंदू पंचांग की मानें तो हर दिन कोई न कोई त्यौहार या पर्व पड़ता ही है। इनमें से कुछ त्यौहार पर्व आदि बेहद खास माने जाते हैं।
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सनातन धर्म व हिंदू पंचांग की मानें तो हर दिन कोई न कोई त्यौहार या पर्व पड़ता ही है। इनमें से कुछ त्यौहार पर्व आदि बेहद खास माने जाते हैं। जिनमें से एक है कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला गोपाष्टमी का पर्व। अपने वेबसाइट की माध्यम से हम आपको इसके मुहूर्त व पूजन विधि आदि के बारे में तो बता ही चुके हैं। इसी कड़ी को न तोड़ते हुए अब हम आपको बताने वाले हैं इसके महत्व के साथ-साथ इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
शास्त्रों में बताया गया है कि गोपाष्टमी के दिन गोवर्धन, गाय,बछड़े तथा भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है। जो भी जातक इस दिन गायों को भोजन खिलाता है, उनकी सेवा करता व विधि वित इनकी आराधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तो वहीं खास रूप से बताया जाता है कि जो जातक इस दिन श्यामा गाय को भोजन करवाता है, और कई गुना अच्छे फल प्राप्त होते हैं।
धार्मिक पुराणों में गाय को गोमाता भी कहा जाता है, जिस प्रकार एक मां अपनी संतान को हर सुख देना चाहती है, उसी प्रकार गौ माता भी सेवा करने वाले जातकों को अपने कोमल ह्रदय में स्थान देती हैं। इतना ही नहीं उनकी हर इच्छा को पूरी करती हैं। यही कारण है कि गोपाष्टमी के दिन को लेकर मान्ता प्रचलित है कि गौ सेवा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी कोई संकट नहीं घेरता।
गाय का दूध, घी, दही, छाछ और यहां तक इनका मूत्र भी स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। धार्मिक ग्रंंथ में कहा गया है कि इनका त्यौहार हमें ये याद दिलाता है कि मानव जीवन गौ माता का ऋणी हैं और हमें उनका सम्मान और सेवा करनी चाहिए। अब बात करते हैं इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में-
इस बात से शायद ही कोई अंजान होगा भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल्य अवस्था में कितनी बाल लीलाएं की हैं, मगर इन लीलाओं की खास बात तो ये है कि इन लीलाओं को करते हुए उन्होंने गौ माता की सेवा भी की। शास्त्रों में वर्णित इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार बाल कृष्ण ने माता यशोदा से एक दिन गाय चरान का आग्रह किया। जिसके बाद यशोदा मैय्या ने नंद बाबा से इसकी अनुमति ली। भगवान श्री कृष्ण के पिता नंद बाबा ने इस कार्य को करने का शुभ मुहूर्त जानने की इच्छा से ब्राह्माण से मिले। ब्राह्माण देवता ने उन्हें कहा कि गाय चराने की शुरूआत करने लिए आज का ही दिन बेहद अच्छा व शुभ है। जिसके बाद माता यशोदा मां ने अपने लल्ला कान्हा का श्रृंगार किया, और उनके पैरों में जूतियां पहनाने लगीं। तो कान्हा न उन्हें रोकते हुए कहा कि मैय्या मेरा गायों ने पैरो में जूतियां नहीं पहनीं तो मैं कैसे पहन सकता हूं। तो यदि आप इन्हें पहना सकती हों तो मैं भी पहने लूंगा। ऐसा कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण अपने जीवन में जितना समय वृंदावन में रहे, उन्होंने कभी अपने पैरों में जूतियां नहीं पहनीं। सनातन धर्म के ग्रंथों के अनुसार आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम, श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान ने उस वन में प्रवेश किया। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार अष्टमी के दिन गायों को चराने के कारण लोग श्री कृष्ण को गोविंदा के नाम से जानने लगे।