क्या है गुंडिचा मंदिर मार्जन की प्रथा ? जानें यहां

Edited By Lata,Updated: 03 Jul, 2019 03:18 PM

gundicha temple in odisha

हिंदू धर्म में आदि-अनादि काल से लेकर आज तक भगवान श्री हरि विष्णु की लीला का वर्णन मिलता है l चाहे वो सतयुग में भगवान श्री राम का अवतार हो या फिर द्वापर में वृन्दावन की कृष्ण लीलाएं l

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हिंदू धर्म में आदि-अनादि काल से लेकर आज तक भगवान श्री हरि विष्णु की लीला का वर्णन मिलता है l चाहे वो सतयुग में भगवान श्री राम का अवतार हो या फिर द्वापर में वृन्दावन की कृष्ण लीलाएं l लेकिन आज हम बात करेंगे भगवान कृष्ण के अवतार भगवान जगन्नाथ के बारे में। जगन्नाथ पुरी का प्राचीन मंदिर भारत के प्रमुख मंदिरों मे से एक है l उड़ीसा के पुरी धाम में हर साल जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार पुरी में रथयात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि जोकि इस वर्ष कल यानि 4 जुलाई दिन गुरुवार को निकाली जाएगी। हांलाकि जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ ज्येष्ट मास की देव स्नान पूर्णिमा को यानि 17 जून को स्नान यात्रा से हो गया था। स्नान यात्रा के दौरान अत्यधिक स्नान के कारण भगवान जगन्नाथ और दोनों भाई बहन बीमार हो गए थे। इस कारण से उनको एकांतवास में रखा गया था और कल यानि आषाढ़ की द्वितीया तिथि में वह अपने भक्तों को दर्शन देगें। उसके बाद भगवान एक सप्ताह के लिए अपनी मौसी के घर रुकते हैं, जिसे गुंडिचा मंदिर के नाम से जाना जाता है। किंतु क्या आप ये बात जानते हैं कि रथयात्रा से एक दिन पहले यानि आज के दिन  गुंडिचा मंदिर मार्जन किया जाता है। अगर नहीं तो चलिए जानते हैं इसकी कथा के बारे में विस्तार से। 
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गुंडिचा मंदिर अर्थात भगवा की मौसी का घर और मार्जन अर्थात साफ-सफाई करना। यह मंदिर जगन्नाथ मंदिर से 2 कि.मी उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। गुंडिचा मंदिर जहां स्थित है उस स्थान को “सुंदराचल” कहा जाता है। सुंदराचल, की तुलना वृन्दावन से की गई है और नीलाचल जहां श्री जगन्नाथ रहते हैं वह द्वारका माना जाता है। भक्तजन ब्रजवासिओं के भाव में रथयात्रा के समय प्रभु जगन्नाथ से लौटने की प्रार्थना करते हैं इसलिए प्रभु उन भक्तों के साथ वृन्दावन यानि गुंडिचा आते हैं। 

मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर को भगवान का जन्म स्थान भी कहा जाता है। क्योंकि यहां महावेदी नामक मंच पर दिव्य शिल्पकार विश्वकर्मा ने राजा इंद्र की इच्छा अनुसार भगवान जगन्नाथ, बलदेव और देवी सुभद्रा के विग्रह को दारुब्रह्म से प्रकट किया था। यह मंदिर राजा इंद्र की पत्नी गुंडिचा रानी के नाम पर है और इसी क्षेत्र में राजा ने एक हजार अश्वमेघ यज्ञ किए थे। 
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500 वर्ष पूर्व श्री चैतन्य महाप्रभु ने ही गुंडिचा मंदिर मार्जन की प्रथा को शुरू किया था। उनका मानना था कि अगर हमें भगवान को अपने मन में विराजमान करना है तो सबसे पहले अपने मन से हर तरह की मैल का त्याग करना होगा। भक्ति के लिए अपने ह्रदय को साफ और दोष रहित बनाना अनिवार्य माना गया है। दुषित मन में हम भगवान को कभी नहीं बिठा सकते हैं, क्योंकि हमारा मन मैल से भरा हुआ है तो ऐसे में मन को मैल रहित बनाने के लिए उसकी साफ-सफाई यानि दोष रहित होना जरूरी है और ये केवल भगवान की सेवा और भक्ति से ही संभंव हो सकता है। ठीक वैसे ही चैतन्य महाप्रभु ने गुंडिचा मंदिर में जमा हुई धूल इत्यादि को साफ किया और उसके पश्चात झाड़ू व पानी से सारे मंदिर का 2 से 3 बार मार्जन किया। उसके बाद वह अपने अंग वस्त्र यानि अपने कपड़ों से मंदिर को साफ करते हैं ताकि थोड़ी सी धूल-मिट्टी वहां दिखने न पाए। इसी तरह महाप्रभु हर भक्त का हाथ पकड़कर सिखाते कि किस तरह मंदिर को साफ करना है। 
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इसी तरह अगर आप भी अपने मन में भगवान को विराजमान करना चाहते हैं तो पहले उसे अच्छे से साफ करना होगा। ताकि उसमें काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसी कोई भी गंदगी न रह जाए व हमारा मन भगवान के लिए एक कोमल आसन की तरह काम करे। 

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