Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jan, 2018 12:19 PM
एक बार महान कवि माघ अपने घर में बैठे एक रचना लिखने में तल्लीन थे। एक गरीब ब्राह्मण उनके पास आया और बोला, ‘‘आपसे एक आशा लेकर आया हूं। मेरी एक कन्या है। वह जवान हो गई है। उसके विवाह की व्यवस्था करनी है
एक बार महान कवि माघ अपने घर में बैठे एक रचना लिखने में तल्लीन थे। एक गरीब ब्राह्मण उनके पास आया और बोला, ‘‘आपसे एक आशा लेकर आया हूं। मेरी एक कन्या है। वह जवान हो गई है। उसके विवाह की व्यवस्था करनी है, किंतु मेरे पास कुछ भी नहीं है। आपकी उदारमना प्रकृति की चर्चाएं दूर-दूर तक हैं। आपकी कृपा हो जाए तो मेरी कन्या का भाग्य बन जाएगा।’’
माघ स्वयं बहुत ही गरीब थे। वह सोचने लगे, ‘‘गरीब ब्राह्मण को क्या दिया जाए, देने के लिए तो कुछ भी नहीं है। क्या इसे खाली हाथ वापस भेजना होगा?’’ यह सोचते-सोचते उनकी दृष्टि किनारे सोई हुई पत्नी पर पड़ी। उसके हाथों में सोने के कंगन चमक रहे थे। संपत्ति के नाम पर यही उसकी जमा-पूंजी थी। माघ ने सोचा, ‘‘कौन जाने मांगने पर दे या न दे। सोई हुई है, यह अच्छा अवसर है, क्यों न एक कंगन चुपचाप निकाल लिया जाए।’’
जैसे ही माघ कंगन निकालने लगे, पत्नी की नींद टूट गई और उसने पूछा, ‘‘आप क्यों कंगन निकालना चाहते हैं?’’ माघ बोले, ‘‘गरीब ब्राह्मण द्वार पर बैठा है, बड़ी आशा लेकर आया है। उसे अपनी युवा पुत्री का विवाह करना है। घर में कुछ और देने को है नहीं। तुम्हें इसलिए नहीं जगाया कि कहीं तुम कंगन देने से इंकार न कर दो।’’
पत्नी बोली, ‘‘मुझे आपके साथ रहते इतने वर्ष हो गए, किंतु आज तक आप मुझे पहचान न पाए। आप तो एक ही कंगन ले जाने की सोच रहे थे लेकिन आप मेरा सर्वस्व भी ले जाएं तो भी मैं प्रसन्न होऊंगी। पत्नी का इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा कि वह पति के साथ मानव कल्याण के काम आती रहे।’’
यह कहकर माघ की पत्नी ने अपने दोनों कंगन बाहर बैठे ब्राह्मण को दे दिए। माघ और उनकी पत्नी की उदारता से प्रभावित वह ब्राह्मण आंख में आंसू लिए वहां से चला
गया। दरअसल हाथों की शोभा दान देने में है, कंगन से नहीं।