Edited By Sarita Thapa,Updated: 19 Aug, 2025 06:00 AM

Inspirational Story: आवागमन के चक्र में मानव की आत्मा ने परिभ्रमण करते हुए अनेक योनियों में जन्म लिया है, परंतु मानव शरीर जैसा कोई अन्य शरीर नहीं मिला, जिससे आत्मा-परमात्मा को जाना जा सकता, साधना की जा सकती और सद्गुणों का जीवन में चरम विकास संभव हो...
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Inspirational Story: आवागमन के चक्र में मानव की आत्मा ने परिभ्रमण करते हुए अनेक योनियों में जन्म लिया है, परंतु मानव शरीर जैसा कोई अन्य शरीर नहीं मिला, जिससे आत्मा-परमात्मा को जाना जा सकता, साधना की जा सकती और सद्गुणों का जीवन में चरम विकास संभव हो पाता। प्रकृति में सब कुछ नियमबद्ध होने के कारण व्यक्ति को अपना जीवन मर्यादित बनाना चाहिए। अनियंत्रित जीवन में स्वाभाविक शक्तियों की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती। जितेन्द्रिय व्यक्ति इन्द्रियों को अपनी सेविका बनाता है और वह स्वाधीन तथा अत्यन्त शक्तिमान बन सकता है। सदाचार का उद्देश्य संयम है। संयम में शक्ति है और शक्ति ही आनन्द की आधारशिला है। संयम से आत्मा, मन तथा शरीर का बल दृढ़ बनता है।
संयम से भीतरी उलझनों और वासनाओं का दमन होता है तथा एकाग्रता बढ़ती है। स्वयं को अनुशासन में रखने वाला सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है। इन्द्रियों के दमन का अभ्यास जीवन को शांत तथा सहनशील बनाता है। इन्द्रिय संयम रूपी दवाई शारीरिक स्वास्थ्य सुधारने के साथ पारमाॢथक स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करती है। इंद्रियां वश में रखने वाले की बुद्धि स्थिर है। उसे ही विद्वान तथा पंडित कहा जाता है। संयम हीन व्यक्ति का जीवन बिना पतवार की नौका के समान होता है। काम-वासनाओं के वेग को रोककर ध्यान तथा समाधि का अभ्यास करना कठिन है, किंतु प्रयत्न और पुरुषार्थ से कठिनाईयां दूर होती हैं और पथ निॢवघ्न हो जाता है। चंचल इन्द्रियों को जीतने वाला, हृदय में संयम के प्रति पूर्ण विश्वास रखने वाला तथा मन, वचन और कार्य के योगों को वश में करने वाला संयम में जागृत होता है, साधना को सफल कर लक्ष्य को प्राप्त करता है।

जितेन्द्रिय बनने के लिए इन्द्रियों को आकॢषत तथा विकॢषत करने वाले विषयों से खींच लेना चाहिए। शरीर को धारण करने के लिए सभी कार्य-व्यवहार आवश्यक हैं, किंतु उनमें आसक्ति नहीं होनी चाहिए। सुनकर, देखकर, सूंघकर, छूकर तथा खाकर भी जिस व्यक्ति में न प्रसन्नता होती है और न ग्लानि, वही व्यक्ति जितेन्द्रिय है। इन्द्रियों के साथ मन को भी जीतना आवश्यक है। मन को जीतने वाला शूरवीर सारे जगत को जीत सकता है।
आत्मा अनन्त शक्तियों का निधान होने से सारी शक्तियों का स्रोत है। मन को अपने अधिकार में रखने पर ही उसे सही मार्ग पर लाया जा सकता है। क्रोध, मान, माया, लोभ, काम आदि लुटेरे हृदय में दुबक कर बैठे रहते हैं और अवसर पाते ही मन को अपने फौलादी पंजों से जकड़ने का प्रयत्न करते हैं। इनके शिकंजे से निकलकर भगवान के पास पहुंचना असंभव हो जाता है। प्रभु के अतिरिक्त किसी अन्य में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। भगवान के समीप पहुंचने के लिए काम-क्रोध आदि लुटेरों के पंजों को अपने नजदीक नहीं फटकने देना चाहिए। कामादि विकार बड़े कौशल तथा आकर्षण के साथ मन पर अधिकार करने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु इनका भूलकर भी भरोसा नहीं करना चाहिए।
