Edited By Prachi Sharma,Updated: 07 Sep, 2025 07:01 AM

Inspirational Story: यूनानी दार्शनिक सुकरात समुद्र के किनारे टहल रहे थे। उनकी नजर रेत पर बैठे एक अबोध बालक पर पड़ी, जो रो रहा था। सुकरात ने रोते बालक का सिर सहलाते हुए उससे रोने का कारण पूछा। बालक ने कहा, “यह जो मेरे हाथ में प्याला है, इसमें मैं...
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Inspirational Story: यूनानी दार्शनिक सुकरात समुद्र के किनारे टहल रहे थे। उनकी नजर रेत पर बैठे एक अबोध बालक पर पड़ी, जो रो रहा था। सुकरात ने रोते बालक का सिर सहलाते हुए उससे रोने का कारण पूछा। बालक ने कहा, “यह जो मेरे हाथ में प्याला है, इसमें मैं समुद्र के सारे पानी को भरना चाहता हूं, किंतु यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं।” बालक की बात सुनकर सुकरात की आंखों में आंसू आ गए।
सुकरात को रोता देख, रोता हुआ बालक शांत हो गया और चकित होकर पूछने लगा, “आप भी मेरी तरह रोने लगे, पर आपका प्याला कहां है ?”
सुकरात ने जवाब दिया, “बच्चे, तू छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहता है और मैं अपनी छोटी-सी बुद्धि में संसार की तमाम जानकारियां भरना चाहता हूं।”
बालक को सुकरात की बातें कितनी समझ में आईं यह तो पता नहीं, लेकिन दो पल असमंजस में रहने के बाद उसने अपना प्याला समुद्र में फैंक दिया और बोला, “सागर यदि तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता, तो मेरा प्याला तो तेरे में समा सकता है।”
बच्चे की इस हरकत ने सुकरात की आंखें खोल दीं। उन्हें एक कीमती सूत्र हाथ लग गया था।

सुकरात ने दोनों हाथ आकाश की ओर उठाकर कहा, “हे परमेश्वर, आपका असीम ज्ञान व आपका विराट अस्तित्व तो मेरी बुद्धि में नहीं समा सकता किंतु मैं अपने संपूर्ण अस्तित्व के साथ आपमें जरूर लीन हो सकता हूं।”
दरअसल, सुकरात को परमात्मा ने बालक के माध्यम से ज्ञान दे दिया। जिस सुकरात से मिलने के लिए बड़े-बड़े विद्वानों को समय लेना पड़ता था, उसे एक अबोध बालक ने संतुष्ट कर दिया।
