न केवल शास्त्र बल्कि विज्ञान भी मानता है Intercaste marriage का ये Side effect

Edited By Updated: 27 May, 2019 11:52 AM

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हिंदू धर्म में विवाह करना एक संस्कार है, जिसके बाद व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है। शादी को पवित्र बंधन कहा जाता है, अत: इसमें बंधने वाले लड़का-लड़की के लिए शास्त्रों में कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। वर्तमान समय में लोग पाश्चात्य के रंग...

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हिंदू धर्म में विवाह करना एक संस्कार है, जिसके बाद व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है। शादी को पवित्र बंधन कहा जाता है, अत: इसमें बंधने वाले लड़का-लड़की के लिए शास्त्रों में कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। वर्तमान समय में लोग पाश्चात्य के रंग में रंगे हुए हैं। उन्हें अपनी धर्म-संस्कृति को फॉलो करना ओल्ड फैशन बनाता है। तभी तो आजकल इंटरकास्ट मैरिज आम देखने को मिल जाती हैं। शास्त्र इसकी इजाजत नहीं देते। पुराणों में कहा गया है अंतर जाति विवाह से जो बच्चे पैदा होते हैं वे वर्ण संकर होते हैं। कहते हैं उन्हें पितरों का तर्पण, पिण्डदान करने का अधिकार नहीं होता क्योंकि इनके द्वारा किया गया तर्पण और पिण्डदान पितर स्वीकार नहीं करते। माता-पिता की जाती अलग होने से संतान के अंश में अंतर रहता है। 

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सजातीय विवाह से पैदा हुई संतान अपने साथ-साथ कुल का भी नाश करती है। श्रीमद्भागवत पुराण के आरंभ में ही धुंधकारी और गोकर्ण की कथा इसका उदाहरण है। महाभारत में भी कुल के नाश का बड़ा कारण इंटर कास्ट मैरिज था। महाराज शांतनु ने क्षत्रिय होते हुए मछुआरे की कन्या सत्यवती से शादी रचाई। भीष्म ने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया। सत्यवती के पुत्र छोटी आयु में ही स्वर्ग सिधार गए। सत्यवती के पहले पुत्र महर्षि व्यास की कृपा से पाण्डु और धृतराष्ट्र का जन्म हुआ। दोनों के पुत्रों में महाभारत का युद्ध हुआ और कुल का नाश हुआ।   

अब आइए जानें विज्ञान क्या कहता है, भारत में सदियों से सजातीय यानी अपनी जाति में विवाह करने की परम्परा रही है परंतु हाल ही में वैज्ञानिकों की एक टीम ने पता लगाया है कि भारतीय पुरुषों में शुक्राणुओं के उत्पादन के लिए जिम्मेदार ‘वाई क्रोमोसोम्स’ (गुणसूत्रों) के खात्मे की यही एक प्रमुख वजह हो सकती है जिससे भारतीय पुरुष बांझ हो सकते हैं। 

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दरअसल, पुरुषों में पाए जाने वाले ‘वाई क्रोमोसोम’ में कई जीन होते हैं जो शुक्राणुओं के उत्पादन और उनकी गुणवत्ता में भूमिका निभाते हैं। इनमें ये जीन्स किसी वजह से विलुप्त या नष्ट होने लगते हैं तो शुक्राणु उत्पादन में कमी होने लगती है जो अंतत: पुरुषों में बांझपन को जन्म दे सकती है।

साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन दर्शाता है कि भारतीय आबादी की जातीयता, सजातीय विवाह और लंबे समय तक भौगोलिक अलगाव की वजह से किस तरह ‘वाई क्रोमोसोम्स’ विलुप्त हो रहे हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार ‘वाई क्रोमोसोम्स’ में गड़बड़ी ‘टैस्टीक्यूलोपैथी’ तथा ‘स्पर्माटोजैनिक’ जैसी व्याधियों की वजह से होने वाले बांझपन का प्रमुख कारण है। 

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 973 बांझ पुरुषों के रक्त नमूनों की जांच की। इनमें से 771 पुरुष ‘एजूस्पर्मिया’ (निल शुक्राणु), 105 ‘ओलिगोजूस्पर्मिया’ (कम शुक्राणु) और 97 ‘ऑलिगोटेराटोजूस्पर्मिया’ (असामान्य आकार-प्रकार के साथ कम शुक्राणु) की समस्या से ग्रस्त थे। 

अध्ययन में 29.4 प्रतिशत बांझ भारतीय पुरुषों में ‘वाई क्रोमोसोम्स’ के खत्म होने का पता चला जिनमें नॉन एलेलिक होमोलोगस रिकॉम्बिनेशन (डी.एन.ए. का सीक्वैंस) (सजातीय विवाह के कारण) 25.8 प्रतिशत में पाया गया। भारतीय जनसंख्या कई प्रकार से अनूठी है और गत 2 हजार वर्षों से सजातीय विवाह परम्पराओं का पालन कर रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसलिए जरूरी है कि ‘वाई क्रोमोसोम्स’ के खात्मे तथा बांझपन से उनके संबंध के बारे में अध्ययन की तुलना अन्य देशों में होने वाले ऐसे ही अध्ययनों से की जाए। 

यह अध्ययन भारतीय पुरुषों में बांझपन के उपचार में मददगार हो सकता है। यदि कोई पुरुष शुक्राणु की निम्न गतिशीलता या कम शुक्राणुओं की समस्या से ग्रस्त है तो ऐसे दंपति कृत्रिम प्रजनन तकनीकों की सहायता लेते हैं लेकिन ऐसे पुरुषों में यदि ‘वाई क्रोमोसोम्स’ में खामी है तो कृत्रिम प्रजनन भी विफल हो सकता है। ऐसे पुरुषों में आनुवांशिक परीक्षणों से पता लग सकता है कि कृत्रिम प्रजनन सफल होगा या नहीं।

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