Janmashtami Vrat Vidhi: कुंडली के हर दोष से मुक्त करता है श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत, ये है शास्त्रीय विधि

Edited By Updated: 14 Aug, 2025 12:11 PM

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Janmashtami Vrat Vidhi benefits: श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज  माना गया है यानी इस दिन व्रत करने से आपको साल भर के व्रतों से भी अधिक फल प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन व्रत करने से भगवान अपने भक्तों को महापुण्य के सभी फल...

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Janmashtami Vrat Vidhi benefits: श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज  माना गया है यानी इस दिन व्रत करने से आपको साल भर के व्रतों से भी अधिक फल प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन व्रत करने से भगवान अपने भक्तों को महापुण्य के सभी फल प्रदान करते हैं यानी संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि, वंश वृद्धि, दीर्घायु व पितृ दोष मुक्ति का आशीर्वाद मिलता है। कुंडली में किसी भी तरह का दोष हो बहुत सारे ज्योतिष विद्वानों का मानना है की केवल श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत रखने से अशुभ ग्रह शुभ होने लगते हैं।

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Janmashtami Vrat Vidhi जन्माष्टमी व्रत विधि: व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है। उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें। हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल का छिड़काव करके देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं और इस सूतिका गृह में सुंदर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सब का क्रमशः नाम लेते हुए विधिवत पूजन करें। जन्माष्टमी का यह व्रत रात्रि 12:00 बजे के बाद ही खोला जाता है।  इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलाहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवा लिया जा सकता है।

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यदि ऐसा करना संभव न हो तो दिन भर निराहार या फलाहार व्रत रखें। रात्रि में ठीक जन्म समय पर भगवान कृष्ण की मूर्ति को दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल से स्नान कराएं।
पीतांबर, फूलमाला और बांसुरी अर्पित करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें।
बाल गोपाल को झूले में बिठाकर प्रेम से झुलाएं और माखन-मिश्री का भोग लगाएं।

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जन्माष्टमी की रात प्रेमपूर्वक कथा सुनें और व्रत करें, उसके जीवन में भक्ति, आनंद और धर्म की स्थायी स्थापना होती है और उसके घर में कभी सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती।

अगर आप विवाहित हैं तो उपवास रखने के एक रात्रि पूर्व आपको ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। खासतौर पर रात्रि 12 बजे के बाद से ही आपका उपवास प्रारंभ हो जाता है और यह अगले दिन रात में 12 बजे ही श्री कृष्‍ण के जन्‍म के बाद ही खुलता है।

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