Jassa Singh Ramgarhia: सिख समुदाय के महानायक थे जस्सा सिंह रामगढ़िया, पढ़ें उनकी वीरगाथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Jul, 2023 11:17 AM

jassa singh ramgarhia

बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहादत के बाद सिखों को न सिर्फ स्थानीय मुगल साम्राज्य के सूबेदारों के विरुद्ध जंग लड़नी पड़ी, बल्कि नादिर शाह और अहमद

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Jassa Singh Ramgarhia: बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहादत के बाद सिखों को न सिर्फ स्थानीय मुगल साम्राज्य के सूबेदारों के विरुद्ध जंग लड़नी पड़ी, बल्कि नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली जैसे विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भी संघर्ष करना पड़ा। ऐसे कष्टदायक हालात में सिखों की बागडोर महान सिख जत्थेदारों के हाथ में रही। 18वीं शताब्दी के अनुपम वीर, आदर्श आचरण और पवित्र विचारधारा के महान सिख योद्धाओं में एक बड़ा ही महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय नाम है, महान सिख सिपहसालार सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया का।

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Family of devotees and sacrifices श्रद्धालु एवं बलिदानी परिवार : इनका जन्म 5 मई, 1723 को लाहौर के समीप गांव ईछोगिल (ईचोगिल) में हुआ था। इनके पूर्वज काफी समय से गुरु घर की सेवा में थे। इनके दादा भाई हरदास सिंह दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के हजूरी सिंहों में से एक थे, जो लम्बे समय तक गुरु साहिब के साथ रहे।

बाबा बंदा सिंह बहादुर के पंजाब आगमन पर भाई हरदास सिंह बाबा जी की फौज में शामिल हो गए और अनेक युद्ध लड़े। अंतत: आप बजवाड़े के निकट शहीद हो गए। आपके पिता सरदार भगवान सिंह भी उच्च आचरण वाले सिख थे। उन्होंने भी अनेक युद्ध लड़े और सन 1738 ई. में वजीराबाद के निकट नादिर शाह के लश्कर के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए।

Carrier of family martyrdom tradition पारिवारिक शहीदी परम्परा के वाहक : परिवार की शहीदी परम्परा का सरदार जस्सा सिंह पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। आप भी एक बहादुर योद्धा के रूप में बड़े हुए। मात्र 15-16 वर्ष की आयु में नादिर शाह के विरुद्ध मुगल लश्कर की ओर से लड़ते हुए आप ने और आपके जत्थे ने अद्भुत वीरता दिखाई, जिससे खुश होकर लाहौर के सूबेदार जकरिया खान ने आपको 5 गांवों की जागीर ईनाम के तौर पर दी।

Cult service पंथ की सेवा : 1745 के बाद मीर मन्नू के दौर में पंजाब में एक बार फिर सिखों पर दमन चक्र चला। ऐसे में एक योजना के तहत सरदार जस्सा सिंह मीर मन्नू के एक जरनैल अदीना बेग की फौज में घुड़सवार सिखों के जत्थे के फौजदार बन गए। यहां रह कर उन्होंने सिख पंथ की जबरदस्त मदद की।

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1748 की बात है, अदीना बेग की फौज ने सिखों के एक किले रामरौणी को घेर रखा था। इस घेरे के दौरान सरदार जस्सा सिंह अपने जत्थे के साथ सिखों से जा मिले और दीवान कौड़ामल की मदद से अदीना बेग को वापस लाहौर भिजवा दिया। बाद में यह किला सरदार जस्सा सिंह को ही दे दिया गया, जिन्होंने किले का जीर्णोद्धार करवाया और इसका नाम बदल कर ‘रामगढ़’ रख दिया। यहीं से सरदार जस्सा सिंह ‘सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया’ नाम से विख्यात हो गए।

Cooperation in every campaign of Sikhs सिखों की हर मुहिम में सहयोग : अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों, मुगलों से युद्धों और सिखों द्वारा चलाई गई हर जंगी मुहिम में सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। खालसे की ओर से दिल्ली विजय की मुहिमों में भी सरदार जस्सा सिंह हमेशा शामिल रहे।

Extension of Ramgarhia Misl रामगढ़िया मिसल का विस्तार : 1767 तक सरदार जस्सा सिंह रामगढिय़ा का अधिकार एक बड़े क्षेत्र पर हो गया, जिसके अंतर्गत श्री हरगोबिंदपुर, कलानौर, बटाला आदि शहर आते थे। इस इलाके में 7 लाख रुपए कर एकत्र होता था। कई पहाड़ी इलाके और दोआबा का बड़ा क्षेत्र भी आपके कब्जे में रहा।

Premature departure अकाल प्रस्थान : सन् 1803 में 80 वर्ष की आयु में सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया अकाल प्रस्थान कर गए। आपके पुत्र सरदार जोध सिंह सन् 1808 ई. में महाराजा रणजीत सिंह के सिख राज में शामिल हो गए।   

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