Edited By Sarita Thapa,Updated: 19 Dec, 2025 02:23 PM

आचार्य चाणक्य, जिन्हें दुनिया के महानतम राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों में गिना जाता है, उन्होंने अपनी 'चाणक्य नीति' में जीवन के हर पहलू पर अनमोल सुझाव दिए हैं। उनका मानना था कि एक समाज का भविष्य उसके विद्यार्थियों की योग्यता पर निर्भर करता है।
Chanakya Niti : आचार्य चाणक्य, जिन्हें दुनिया के महानतम राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों में गिना जाता है, उन्होंने अपनी 'चाणक्य नीति' में जीवन के हर पहलू पर अनमोल सुझाव दिए हैं। उनका मानना था कि एक समाज का भविष्य उसके विद्यार्थियों की योग्यता पर निर्भर करता है। अक्सर छात्र कड़ी मेहनत तो करते हैं, लेकिन सही दिशा और अनुशासन के अभाव में वे अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। चाणक्य ने उन बाधाओं की पहचान की है जो एक छात्र की एकाग्रता और सफलता के बीच दीवार बनकर खड़ी होती हैं। तो आइए जानते हैं चाणक्य द्वारा बताई गई उन चार बातों के बारे में जिन्हें अपनाकर विद्यार्थी भविष्य के उज्ज्वल बना सकते हैं।
आलस्य का त्याग
चाणक्य के अनुसार, आलस्य विद्यार्थी का सबसे बड़ा शत्रु है। जो छात्र आज का काम कल पर टालता है, वह कभी भी समय के साथ नहीं चल सकता। शिक्षा प्राप्त करने के लिए शरीर और मन का सक्रिय होना अनिवार्य है। अनुशासन ही वह चाबी है जो सफलता के द्वार खोलती है।
काम-वासना और विलासिता से दूरी
चाणक्य नीति कहती है कि जिस विद्यार्थी का मन स्वाद, साज-सज्जा और काम-वासना में लगा रहता है, वह कभी एकाग्रता से पढ़ाई नहीं कर सकता। अधिक सुख की चाहत रखने वाले को विद्या नहीं मिलती, और विद्या चाहने वाले को सुख का त्याग करना पड़ता है। सादा जीवन और उच्च विचार का पालन करें। अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना ही विद्यार्थी जीवन की असली तपस्या है।

क्रोध पर नियंत्रण
क्रोध इंसान की बुद्धि को भ्रमित कर देता है। एक विद्यार्थी के लिए शांत दिमाग सबसे बड़ा हथियार है। जब हमें गुस्सा आता है, तो हमारी सीखने की क्षमता खत्म हो जाती है और हम सही-गलत का अंतर भूल जाते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को शांत रखें। धैर्य और संयम ही कठिन विषयों को समझने में मदद करते हैं।
लोभ और मोह से बचाव
विद्यार्थी के मन में किसी भी प्रकार का लालच नहीं होना चाहिए। चाहे वह दूसरों की वस्तुओं का लोभ हो या गलत संगति का मोह। यह चीजें एकाग्रता को भंग करती हैं और व्यक्ति को अपने लक्ष्य से भटका देती हैं। सीख: आपका एकमात्र लक्ष्य ज्ञान का अर्जन होना चाहिए। बाहरी आकर्षणों को अपने उद्देश्य के बीच न आने दें।

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