Edited By Prachi Sharma,Updated: 15 Mar, 2024 08:04 AM
साहित्योत्सव के चौथे दिन तीस सत्रों में कई विषयों पर चर्चाएं और बहुभाषी कहानी और कविता पाठों का आयोजन किया गया। पुस्तकों से रील तक तथा रील से पुस्तकों तक सिनेमा
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नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): साहित्योत्सव के चौथे दिन तीस सत्रों में कई विषयों पर चर्चाएं और बहुभाषी कहानी और कविता पाठों का आयोजन किया गया। पुस्तकों से रील तक तथा रील से पुस्तकों तक सिनेमा और साहित्य की अंतरक्रिया जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर प्रख्यात सिने समालोचक अरुण खोपकर की अध्यक्षता में अजित राय, अतुल तिवारी, मुर्तजा अली, निरुपमा कोतरु, रन्तोत्तमा सेनगुप्ता तथा त्रिपुरारी शरण ने अपने-अपने विचार रखे।
अजित राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह जरूरी नहीं कि अच्छे साहित्य पर अच्छी ही फिल्म बने या फिर खराब साहित्य पर खराब फिल्म ही बने। अतुल तिवारी ने कहा कि सिनेमा एक नई विधा है, लेकिन उसने अपनी ताकत परंपरा से भी प्राप्त की है। मुर्तजा अली ने बताया कि अमूमन लेखक और निर्देशक के बीच सहमति और असहमति की स्थिति हमेशा बनी रहती है। निरुपमा कोतरु ने श्याम बेनेगल का उदाहरण देते हुए कहा कि साहित्यिक कृति को सम्मानजनक से फिल्माने के लिए अच्छे निर्देशक की जरूरत होती है।