Maharaj Kamal Bir ji Birthday: मन की शांति चाहते हो तो स्वीकार भाव को अपनाना सीखें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Oct, 2023 09:24 AM

maharaj kamal bir ji birthday

यदि आप जीवन में परिवर्तन लाना चाहते हो तो पहले अपना होश जगाओ। होश कैसे जागेगा। जब हम गहरे ध्यान द्वारा भीतर उतरते हैं तो आत्मा जागृत

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Maharaj Kamal Bir ji Birthday: यदि आप जीवन में परिवर्तन लाना चाहते हो तो पहले अपना होश जगाओ। होश कैसे जागेगा। जब हम गहरे ध्यान द्वारा भीतर उतरते हैं तो आत्मा जागृत होने पर हमारा होश, विवेक जागता है। सच्चा प्रेम स्वत: हमारे भीतर फूटता है। सच्चा प्रेम स्वार्थ, लोभ, इच्छाओं को काबू करता है तथा हमारे भीतर परमात्मा से एक होने की तड़प पैदा करता है। आत्मा जागृत होने से हमारे जीवन में परिवर्तन होना आरंभ हो जाता है तथा जीवन में शांति, सब्र, संतोष उत्पन्न होता है। जीवन आनंदमय हो जाता है।

जीवन में परिवर्तन लाने में ‘स्वीकार’ भाव भी आवश्यक है। संसार में जो भी घट रहा है इसे  ईश्वर इच्छा जान स्वीकार कर लो। ऐसा करने से मन भी इसे स्वीकार कर हमारे काबू में आ जाएगा। 

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यदि मन की शांति चाहते हो तो ‘स्वीकार भाव’ अपनाना सीखें। कुछ भी घटने पर मन से पूछें, ‘‘क्या मैं इस घटना को स्वीकार कर सकता हूं ?’’ भीतर बैठी आत्मा इसे स्वीकार कर लेगी तथा हम शांति का अनुभव करेंगे।

गहरे ध्यान द्वारा हमारे मन तथा आत्मा पर पड़ी जन्मों की मैल भी धुल जाती है। जो मानव मन सदा विकारों में फंसा है तथा नकारात्मक सोचता है, दुखी तथा परेशान रहता है, आत्मा जागृति पैदा होने पर सकारात्मक हो जाता है। मन की मैल उतरने से शांति तथा आनंद का अनुभव करता है। सकारात्मक विचारधारा से ही व्यक्ति अपना तथा समाज का भला कर सकता है। ये विचार रूहानी सत्संग प्रेम समाज के वर्तमान संचालक परम संत कमलबीर महाराज के हैं।

परम संत महाराज कमलबीर जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1949 को श्री शिमला राम बजाज तथा रामबाई के घर रोहतक में हुआ। धार्मिक वृत्ति के कारण उनकी माता महाराज बीर जी के सत्संग में जाया करती थीं तथा अपने साथ बालक खैरायती लाल बजाज (कमलबीर जी) को भी ले जाती थीं इसलिए बालपन से ही कमलबीर में ईश्वर को जानने की इच्छा उत्पन्न हुई।

शिक्षा पूरी करके आपने श्रम मंत्रालय में सरकारी नौकरी की तथा 2009 में डिप्टी डायरेक्टर के तौर पर सेवा मुक्त हुए। 1977 में श्रीमती कमलेश रानी से विवाह कर अपने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया तथा तीन संतानों के पिता बने। ईश्वर को जानने की तड़प के कारण परम संत बीर जी महाराज के संपर्क में रहे तथा अपनी आत्मा को जागृत किया। 1995 में महाराज बीर जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात इन्हें प्रेम समाज के गुरु के रूप में आसीन किया गया।

तब से आप प्रेम समाज के तीन मूल मंत्रों की व्याख्या कर उन पर अमल करने की प्रेरणा दे रहे हैं।

ये तीन मंत्र हैं- (1) एक जोत सर्वव्यापक (परमात्मा व्यापक है, कण-कण में हैं), (2) श्री प्रेम जी सहाय (परमात्मा प्रेम है प्रेम से पाया जा सकता है) तथा (3) तेरी मौज तू ही जान (स्वीकार भाव) ईश्वर की हर बात को स्वीकार करें। इनके मार्गदर्शन में प्रेम समाज सतत विकासशील है।

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