Markandey Mahadev Mandir: इस मंदिर में भगवान से पहले होती है भक्त की पूजा, जानें इसका रहस्य

Edited By Updated: 27 Jul, 2025 07:00 AM

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Markandey Mahadev Mandir: महादेव की कृपा से मौत भी टल जाती है। इसी सत्य का साक्षात प्रमाण है वाराणसी से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर कैथी में स्थित अत्यंत प्राचीन मार्कंडेय महादेव मंदिर। यह शिव का धाम है और यहां के कण-कण में भगवान भोलेनाथ समाए हैं।

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Markandey Mahadev Mandir: महादेव की कृपा से मौत भी टल जाती है। इसी सत्य का साक्षात प्रमाण है वाराणसी से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर कैथी में स्थित अत्यंत प्राचीन मार्कंडेय महादेव मंदिर। यह शिव का धाम है और यहां के कण-कण में भगवान भोलेनाथ समाए हैं। कैथी स्थित मार्कंडेय महादेव, मध्यमेश्वर स्थित मृत्युंजय महादेव, केदारघाट स्थित केदारेश्वर, बंगाली टोला स्थित तिलभांडेश्वर, रामेश्वर महादेव और माधोपुर स्थित शूलटंकेश्वर महादेव मंदिरों में वर्ष भर दर्शन-पूजन हेतु श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। भगवान शिव की कृपा से ही मार्कंडेय का जन्म हुआ था और उन्हीं की कृपा से उन्हें सप्त कल्पांत जीवन मिला। गंगा और गोमती के संगम पर बसा कैथी गांव का संबंध इसी पौराणिक घटना से है। 

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यहां मार्कंडेय धाम से लोगों की असीम आस्था जुड़ी है। माना जाता है कि यहीं मृकंड ऋषि ने अपनी पत्नी संग तपस्या की थी। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और यहीं उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। शिव वरदान से उन्हें पुत्र मार्कण्डेय हुआ। जब मार्कंडेय के 16 वर्षीय जीवन पूर्ण होने पर यमराज के दूत उन्हें लेने आए तो वह शिव तपस्या में लीन थे। यमदूत का साहस नहीं हुआ उन्हें अपने संग ले जाने का। 

यमदूत यमराज के पास लौट आए और संपूर्ण घटनाक्रम बताया। यमराज विवश थे, अत: वह बालक को लेने पृथ्वी पर आए।  मार्कंडेय पूर्व की भांति शिव की तपस्या में लीन था। तब यम ने उन्हें भयभीत करना चाहा। जब यह दृश्य शिवजी ने देखा तो वह अपने इस नन्हे भक्त की रक्षा करने के लिए प्रकट हो गए। उन्होंने न केवल मार्कंडेय को भयमुक्त किया, बल्कि दीर्घायु का वरदान भी दिया। 

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भगवान शिव ने मार्कंडेय को आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस स्थान पर तुम्हारा धाम होगा जिसमें तुम्हारा स्थान मुझसे ऊंचा होगा। भक्तगण पहले तुम्हारी पूजा करेंगे फिर मेरी। तभी से यह अष्टधाम मार्कंडेय महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मार्कंडेय महादेव धाम में आज भी पहले मार्कंडेय, जो गर्भगृह में ताखे पर विराजमान हैं, की पूजा होती है, फिर भगवान शिव की पूजा की जाती है। माना जाता है कि यहां भगवान की वंदना करने से वह अकाल मृत्यु का संकट टाल देते हैं और भक्त को दीर्घायु का वरदान देते हैं।              

वाराणसी-गाजीपुर मार्ग पर गंगा-गोमती संगम तट पर मार्कंडेय महादेव का यह मंदिर द्वादश ज्योतिॄलगों के समकक्ष है। मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि के अलावा सावन माह में बड़ी संख्या में कांवडि़ए बाबा का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि गंगा-गोमती संगम स्थल से जल लेकर मार्कंडेय महादेव जी को अर्पित करने से सर्व सुख की प्राप्ति होती है। धाम में नियमित रूप से रुद्राभिषेक, श्रृंगार और पूजा-अर्चना के अतिरिक्त संतान प्राप्ति के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण और स्वास्थ्य लाभ और दीर्घ जीवन के लिए महामृत्युंजय अनुष्ठान कराने का विशेष महत्व है। 

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महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां दो दिवसीय मेला लगता है और दूर-दराज से भक्तगण यहां अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए पहुंचते हैं।  भारत सरकार के संस्कृति विभाग व उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा इस धाम के विकास के लिए विगत वर्षों में कई प्रोजैक्ट्स के तहत सौंदर्यीकरण किया गया है, जिससे बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आने लगे हैं। 

कैथी घाट, मार्कंडेय महादेव घाट पर बोटिंग, चिड़ियों को दाना खिलाने, तैराकी आदि का लुत्फ लेने वालों की संख्या में दिनों-दिन इजाफा हो रहा है।  पर्यटक परिजनों एवं बच्चों के साथ कैथी गंगा घाट से संगम घाट तक रिजर्व नाव द्वारा प्रवासी चिडिय़ों को दाना खिलाते हुए गांगेय डॉल्फिन का अवलोकन करते हुए सफर का आनंद लेते हैं। 

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