Edited By Jyoti,Updated: 21 Mar, 2022 01:02 PM
एक मूर्तिकार ऐसी मूूॢतयां बनाता था, जो देखने में सजीव लगती थीं। उस मूॢतकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था। उसे जब लगा कि जल्दी ही उसकी मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी
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एक मूर्तिकार ऐसी मूूॢतयां बनाता था, जो देखने में सजीव लगती थीं। उस मूॢतकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था। उसे जब लगा कि जल्दी ही उसकी मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी में पड़ गया। यमदूतों को भ्रमित करने के लिए उसने अपने जैसी दस मूर्तियां बना डालीं और योजनानुसार उन मूर्तियां के बीच में वह स्वयं जाकर बैठ गया।
यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी ग्यारह आकृतियां देखकर चकित रह गए। इनमें से वास्तविक मनुष्य कौन है, नहीं पहचान पाए। वे सोचने लगे, अब क्या किया जाए। मूर्तिकार के प्राण अगर न ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिए मूर्तियां को तोड़ें तो कला का अपमान होगा।
अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गण अहंकार की स्मृति आई। उसने चाल चलते हुए कहा, ‘‘काश इन मूर्तियां को बनाने वाला मिलता तो मैं उसे बताता कि मूर्तियां तो अति सुंदर बनाई हैं लेकिन इनको बनाने में एक कमी रह गई।’’
यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा कि मेरी कला में कमी कैसे रह सकती है, फिर इस कार्य में तो मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। वह बोल उठा, ‘‘कैसी त्रुटि?’’
झट से यमदूत ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘बस यही गलती कर गए तुम अपने अहंकार में। क्या तुम नहीं जानते कि बेजान मूर्तियां बोला नहीं करतीं।’’