Motivational Concept: जब शिवाजी ने लेना चाहा संन्यास....

Edited By Updated: 09 May, 2022 10:42 AM

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समस्याओं से लड़ते-लड़ते शिवाजी बुरी तरह से परेशान हो चुके थे। वह संन्यास लेकर राजकाज के झंझट से बचना चाहते थे। एक दिन शिवाजी समर्थ गुरु के पास गए और बोले, ‘‘गुरुदेव! राजकाज की जिम्मेदारियों से बहुत परेशान हो

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समस्याओं से लड़ते-लड़ते शिवाजी बुरी तरह से परेशान हो चुके थे। वह संन्यास लेकर राजकाज के झंझट से बचना चाहते थे। एक दिन शिवाजी समर्थ गुरु के पास गए और बोले, ‘‘गुरुदेव! राजकाज की जिम्मेदारियों से बहुत परेशान हो चुका हूं, सोच रहा हूं संन्यास ले लूं?’’ 

समर्थ गुरु बड़े ही सहजभाव से बोले, ‘‘अवश्य संन्यास ले लो। यह सबसे उत्तम राह है।’’ 

यह देख शिवाजी खुश हो गए।

शिवाजी बोले, ‘‘गुरुदेव आपकी दृष्टि में ऐसा कोई व्यक्ति है, जो राजकाज संभाल सके।’’ 

समर्थ गुरु बोले, ‘‘राज्य मुझे दे दो और निशिं्चत होकर संन्यासी बन जाओ। मैं किसी योग्य व्यक्ति को नियुक्त करके सारा राजकाज संभाल लूंगा।’’ 

हाथों में जल लेकर शिवाजी ने अपना संपूर्ण राज्य समर्थ गुरु रामदास को दान कर दिया। इसके बाद वह चल दिए।

शिवाजी थोड़ी दूर गए ही थे कि समर्थ गुरु बोले, ‘‘भविष्य के बारे में भी कुछ सोचा है या नहीं?’’ 

शिवाजी बोले, ‘‘नौकरी करके गुजारा कर लूंगा गुरुदेव।’’ 

समर्थ गुरु बोले, ‘‘यहां आ, मेरे पास है तेरे लिए सबसे बढ़िया नौकरी।’’ 

शिवाजी बोले, ‘‘गुरुदेव! बताइए आपकी बड़ी कृपा होगी?’’

समर्थ गुरु बोले, ‘‘देख! तूने यह राज्य मुझे दे दिया है। अब मैं जिसे चाहूं इसकी देखभाल के लिए रख सकता हूं। इसलिए मुझे किसी योग्य व्यक्ति की खोज करनी पड़ेगी। अत: मैं सोचता हूं कि तुम इसके लिए सबसे अधिक योग्य व्यक्ति हो। आज से तू मेरा राज्य संभालना! इस भाव से नहीं कि तू इसका स्वामी है, बल्कि इस भाव से कि तू इसका सेवक मात्र है। तेरे पास मेरी यह अमानत है।’’ 

इस तरह सेवाभाव से राज्य संचालन करने में शिवाजी को फिर कोई झंझट मालूम नहीं हुआ।

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