Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Sep, 2018 10:35 AM
आजकल चतुर्मास चल रहा है। भगवान विष्णु को शयन करते 2 माह का समय पूर्ण हो गया है, आज के दिन वो करवट बदलते हैं। चतुर्मास में पड़ने वाली परिवर्तिनी एकादशी, पद्मा एकादशी अथवा जलझूलनी एकादशी के नाम से जानी जाने वाली एकादशी का अत्यधिक महत्व है।
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आजकल चतुर्मास चल रहा है। भगवान विष्णु को शयन करते 2 माह का समय पूर्ण हो गया है, आज के दिन वो करवट बदलते हैं। चतुर्मास में पड़ने वाली परिवर्तिनी एकादशी, पद्मा एकादशी अथवा जलझूलनी एकादशी के नाम से जानी जाने वाली एकादशी का अत्यधिक महत्व है। भाद्र मास में शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली इस एकादशी को भगवान विष्णु के साथ उनकी अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी का पूजन करने से धन और सुख से घर-संसार भर जाता है। मरणोपरांत भी इस एकादशी के पुण्य से उत्तम स्थान की प्राप्ति होती है।
व्रत की कथा
त्रेतायुग में बलि नाम का दैत्य भगवान का परमभक्त था, वह बड़ा दानी, सत्यवादी एवं धर्मपरायण था। यज्ञ के प्रभाव से उसने सभी देवताओं को अपने वश में कर लिया, यहां तक कि देवराज इन्द्र तक को जीत कर उसकी अमरापुरी पर कब्जा कर लिया। आकाश, पताल और पृथ्वी, तीनों लोक उसके आधीन थे। जिससे दुखी होकर सभी देवताओं ने भगवान के पास जाकर उनकी स्तुति की। भगवान ने सभी को राजा बलि से मुक्ति दिलाने के लिए वामन अवतार लिया तथा एक छोटे से ब्राह्मण का वेष बनाकर उन्होंने राजा बलि से तीन पग पृथ्वी मांगी, राजा बलि के संकल्प करने के पश्चात भगवान ने अपना विराट रूप धारण करके तीनों लोकों को नाप लिया तथा राजा बलि को सूतल क्षेत्र में भेज दिया। जिस प्रकार भगवान ने अपने भक्तों के हित्त में अवतार लेकर उन्हें राजा बलि से मुक्त करवाया वैसे ही निराकार परमात्मा साकार रूप में धरती पर अवतरित होकर लोगों की रक्षा करते हैं।
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