Paryushan Parv: पर्युषण एक ऐसा सवेरा, जो निद्रा से उठाकर जागृत अवस्था में ले जाता है

Edited By Updated: 13 Sep, 2025 07:50 AM

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Paryushan Parv: पर्युषण पर्व साल में तीन बार आते हैं - माघ, चैत्र और भाद्रप्रद। तीनों माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक होता है पर्युषण पर्व। इसे दश लक्षण पर्व भी कहा जाता है। अन्य धर्मों में जो महत्व नवरात्रि का है, जो महत्व रमजान का है,...

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Paryushan Parv: पर्युषण पर्व साल में तीन बार आते हैं - माघ, चैत्र और भाद्रप्रद। तीनों माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक होता है पर्युषण पर्व। इसे दश लक्षण पर्व भी कहा जाता है। अन्य धर्मों में जो महत्व नवरात्रि का है, जो महत्व रमजान का है, जो महत्व गुरु पर्व का है, जो महत्व बुद्ध पूर्णिमा का है, वही महत्व जैनों में पर्युषण का है। यह जैनियों की आस्था का केंद्र और विश्व शांति का सुधार है। तभी तो जैन धर्म में पर्युषण पर्व का विशेष महत्व है।

Paryushan Parv
पर्युषण को आध्यात्मिक पर्व के रूप में मनाया जाता है, ताकि इसके इन आठ दिनों में तन और मन को साधनामय बना लें, अतीत की त्रुटियों को दूर करते हुए भविष्य में कोई भी गलत कदम न उठे, इसकी तैयारी कर लें। जीवन की शुद्धि कर दें।

पर्युषण आत्मशुद्धि का पर्व है, कोई लौकिक त्यौहार नहीं, जिनमें अच्छा खाना-पीना, पहनना मुख्य होता है, जबकि पर्युषण के आध्यात्मिक पर्व में तप, त्याग और साधना का संदेश है। इस दृष्टि से यह पर्व आध्यात्मिकता के साथ-साथ जीवन उत्थान का पर्व है। श्रमण संस्कृति में पर्युषण को खास महत्व दिया गया है। जहां शेष समस्त पर्वों के पीछे लौकिक कारणों की प्रमुखता है, वहीं पर्युषण पर्व के मूल में आत्म-कल्याण का लक्ष्य छिपा है। इसमें वर्ष भर में लगे दोषों को देख कर, समझ कर प्रायश्चित व तप के द्वारा आत्मा से दूर किया जाता है। पर्युषण पर्व को श्वेताम्बर 8 दिन और दिगम्बर 10 दिन तक मनाते हैं लेकिन दोनों के लिए ही यह गहन अध्ययन, मनन और शुद्धिकरण की अवधि होती है।

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पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है ‘ठहरना’ या ‘इकठ्ठा’ होना। यह शब्द बना है वस् धातु के साथ परि उपसर्ग के मेल से। परि का अर्थ है निकट और वस् का अर्थ है रहना। इसका सम्पूर्ण अर्थ हुआ निकट रहना। मनुष्य परिवार के साथ रहता है, मित्रों के साथ रहता है, धन के साथ रहता है, परंतु वह स्वयं के साथ नहीं रहता।
 
आध्यात्मिकों की दृष्टि में मनुष्य की यही त्रासदी है। त्याग, तपस्या, साधना, क्षमा, मैत्री, आत्मअवलोकन, दान और संयम के द्वारा पर्युषण के दिनों में श्रवक स्वयं के निकट जाने का प्रयास करते हैं। आठ कर्मों का आठ दिनों में प्रक्षालन किया जाता है। आठ ही दंभ (अहंकार) हैं। आठों दंभों के मैल को भी दूर करने का प्रावधान है। खुद को तपाकर आदर्श विश्व निर्माण करने की प्रक्रिया और जीवन जीने की कला है। यह एक ऐसा पर्व है, जो इंसान के जीवन की सारी गंदगी को अपनी क्षमा आदि दश धर्मरूपी तरंगों के द्वारा बाहर करता है और जीवन को शीतल एवं साफ-सुथरा बनाता है।
 
जैन धर्म की त्याग प्रधान संस्कृति में पर्युषण पर्व का अपना अपूर्व एवं विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व है। यह एकमात्र आत्मशुद्धि का प्रेरक पर्व है, इसीलिए यह पर्व ही नहीं, महापर्व है। जैन लोगों का सर्वमान्य विशिष्टतम पर्व है। यह एक ऐसा सवेरा है, जो निद्रा से उठाकर जागृत अवस्था में ले जाता है। अज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। 

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