Edited By Prachi Sharma,Updated: 21 Oct, 2025 02:01 PM

Patal Bhuvaneshwar: उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के गंगोलीहाट जिले के उत्तर में स्थित है पाताल भुवनेश्वर। कहा जाता है कि यहां तैंतीस कोटी देवी-देवता निवास करते हैं तथा स्वयं महादेव यहां रहकर तपस्या करते हैं। यह भी मान्यता है कि महादेव का कैलाश पर्वत पर...
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Patal Bhuvaneshwar: उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के गंगोलीहाट जिले के उत्तर में स्थित है पाताल भुवनेश्वर। कहा जाता है कि यहां तैंतीस कोटी देवी-देवता निवास करते हैं तथा स्वयं महादेव यहां रहकर तपस्या करते हैं। यह भी मान्यता है कि महादेव का कैलाश पर्वत पर जाने का एक रास्ता पाताल भुवनेश्वर से भी जाता है। गुफा में उतरने के लिए छोटी-सी लोहे की सीढ़ी तथा पकड़ने के लिए एक मोटी-सी लोहे की जंजीर लगी है। बाहर से ऐसा लगता है कि गुफा में बहुत अंधेरा होगा लेकिन नीचे का भाग बहुत बड़ा तथा खुला है। बाहर गुफा के ऊपर मौजूद पेड़ों की भीतर न कोई जड़ें या शाखाएं हैं, न किस तरह के जंगल का कोई चिन्ह। पक्के पत्थरों की बनी बड़ी-सी गुफा है, जिसमें काफी रोशनी तथा हवा है। किसी प्रकार का कोई अंधेरा, घुटन या सीलन नहीं होती। एकदम साफ-सुथरी और खुली-खुली, जिसमें सौ से ज्यादा लोग एक साथ आ सकते थे।
गुफा में उतरने के लिए 82 सीढ़ियां हैं। गुफा की कुल लम्बाई 390 मीटर है, जिसमें सीढ़ियों तक की लम्बाई 90 मीटर है। गुफा के अंदर हमने सबसे पहले सीढ़ियों के बीच में भगवान विष्णु के अवतार नृसिंह भगवान का फुटलिंग शोभित नजर आता है। नीचे पहुंचते ही दाहिनी ओर शेषनाग की फन फैलाए मूर्ति दिखती है, जिसने अपने फन पर सम्पूर्ण पृथ्वी को धारण कर रखा है।
इसके आगे एक हवनकुंड है। कहते हैं कि राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित के उद्धार के लिए उलंग ऋषि के निर्देशानुसार इसी हवन कुंड में सर्प यज्ञ किया था। कुंड के ऊपर तक्षक नाग बना हुआ है, जिसने राजा परीक्षित को काट लिया था। गुफा में आगे की जमीन टेढ़े-मेढ़े पत्थर की बनी हुई है। गाइड बताते हैं कि यह शेषनाग की रीढ़ की हड्डी है, फिर वह लोगों को शेषनाग के फन, दांत और विष की पोटली भी दिखाते हैं।

गुफा में आगे बढ़ने पर छत की ओर एक कमल की सी आकृति है, जिससे जल की बूंदें टपकती रहती हैं। नीचे गणेश जी की सी आकृति थी। कहते हैं कि यह सहस्र कमल है इसके ही जल की बूंदों से गणेश जी के सिर को उनके धड़ से अलग कटने पर जीवित रखा गया था। बाद में हाथी का सिर लगाया गया था। ऐसी पौराणिक मान्यता है।
गणेश जी के सामने चारधाम, केदारनाथ, बद्रीनाथ तथा अमरनाथ लिंगों के रूप में विराजमान हैं। इन लिंगों की बगल में एक गुफा जैसी आकृति है जिससे एक जीभ जैसी आकृति लटकती दिखाई देती है। यह शिव का काल भैरव रूप है, जिसमें उनकी जीभ दिखाई देती है और जो गुफा जैसी दिखाई देती है, उसे ब्रह्मलोक का मार्ग माना जाता है।
इन्हीं काल भैरव के सामने भगवान शंकर का आसन लटकता हुआ दिखाई देता है। कहा गया कि इस पर मुंडमालाधारी पातालचंडी तथा उनका वाहन शेर है। यहां सभी आकृतियां प्राकृतिक हैं, जिन्हें कल्पना से ही रूप दिया गया है। इसके बाद 4 द्वार दिखाई देते हैं। बताया जाता है कि 3 द्वार सतयुग, द्वापर, त्रेता युग की समाप्ति पर बंद हो चुके हैं। मात्र कलियुग का द्वार कलियुग की समाप्ति पर बंद होगा। मोक्षद्वार के आगे खुला हुआ हिस्सा था, वहां दीवार पर ऐसा लगता है जैसे कोई वृक्ष की आकृति हो, जिस पर फूलों के गुच्छे लगे हों। माना जाता है कि वह पारिजात का वृक्ष है, जिसे भगवान कृष्ण इन्द्र की अमरावती पुरी से पृथ्वी लोक में लाए थे।

इसके बाद एक संकरा रास्ता है, जिसे कदली वन मार्ग कहते हैं। रास्ते में छोटी-छोटी कई गुफाएं हैं, जिन्हें मार्कण्डेय ऋषि तथा सप्तर्षि की गुफा के नाम से लोग जानते हैं। गुफा के बीच में एक छोटा-सा कुंड बना है, जिसमें जल भरा था।