Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Sep, 2025 02:00 PM

Pehowa: पिहोवा तीर्थ, हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित एक पवित्र स्थान है, जिसका महत्व वेदों, पुराणों और महाभारत कालीन कथाओं से जुड़ा हुआ है। इसे विशेष रूप से श्राद्ध, पितृ तर्पण और पिंडदान के लिए सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है। मान्यता है...
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Pehowa: पिहोवा तीर्थ, हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित एक पवित्र स्थान है, जिसका महत्व वेदों, पुराणों और महाभारत कालीन कथाओं से जुड़ा हुआ है। इसे विशेष रूप से श्राद्ध, पितृ तर्पण और पिंडदान के लिए सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है। मान्यता है कि पिहोवा तीर्थ पर श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति प्राप्त होती है और वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं। पिहोवा तीर्थ केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि पितरों से जुड़ने और आध्यात्मिक संतुलन पाने का एक दिव्य केंद्र है। यही कारण है कि इसे पितृ श्राद्ध का सर्वोत्तम तीर्थ कहा जाता है।
पिहोवा का नाम प्राचीनकाल में प्रयागपुर रहा है। यहां सरस्वती नदी के तट पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है कि जो भक्त पिहोवा में पिंडदान करता है, उसके पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और कुल में सुख-समृद्धि आती है। यहां आकर श्राद्ध करने से ऐसा फल मिलता है मानो गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर दान किया हो।

महाभारत काल में भी इस स्थान का महत्व रहा है। कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने भी अपने पितरों के लिए यहीं श्राद्ध किया था। इसी कारण यह स्थल पितृ तर्पण के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हुआ। पिहोवा का वातावरण अत्यंत शांत और धार्मिक अनुभूति प्रदान करने वाला है, जहां देश भर से लोग पितृपक्ष के समय आते हैं।
यहां केवल पितृ तर्पण ही नहीं, बल्कि देव पूजन, नदी स्नान और दान-पुण्य करने का भी विशेष महत्व है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि पिहोवा में श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और परिवार की बाधाएं दूर होती हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में यहीं पर राजा पृथु ने अपने पितरों का तर्पण किया था, जिस कारण इस स्थान का नाम पिहोवा पड़ा। इसे पितृ कर्म के लिए सबसे श्रेष्ठ स्थल माना गया है, जहां हजारों वर्षों से लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते आ रहे हैं। यह स्थल कुरुक्षेत्र तीर्थ क्षेत्र का ही हिस्सा माना जाता है, जिसका वर्णन अनेक पुराणों और महाभारत में मिलता है।
पिहोवा तीर्थ पर विशेष रूप से अमावस्या और श्राद्ध पक्ष के अवसर पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां सरस्वती नदी के तट पर बने घाटों पर आचमन, स्नान और तर्पण करना शुभ माना जाता है। यह स्थल केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां श्राद्ध करने से यह विश्वास किया जाता है कि पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

महाभारत, मार्कंडेय पुराण, पदम पुराण, भागवत पुराण तथा वामन पुराण आदि में पृथुदक (जिसे कुरुक्षेत्र भूखंड का हिस्सा माना गया है) को सभी प्रकार के दोषों से रहित कहा गया है। पिहोवा को धर्मक्षेत्र की संज्ञा मिली है। वामन पुराण के अनुसार इस तीर्थ की रचना प्रजापिता ने पृथ्वी, जल और वायु के साथ सृष्टि के आदि में की थी।
जबकि महाभारत में लिखा है कि पिहोवा (कुरुक्षेत्र) की आठ कोस भूमि पर बैठ कर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। गंगा पुत्र भीष्म पितामह की सद्गति भी पृथुदक में हुई थी। पिहोवा में प्रेत पीड़ा शांत होती है। अकाल मृत्यु होने पर दोष निवारण के लिए पिहोवा में कर्मकांड करवाने की परम्परा है। ऐसा करने से मृतक प्राणी अपगति से सद्गति को प्राप्त हो जाता है।
