Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Dec, 2023 10:15 AM
भारतीय संस्कृति और सामान्य जनता के प्रतिनिधि के रूप में 10 वर्ष स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बन कर सरल जीवन और उच्च विचार से देश
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Rajendra Prasad Jayanti 2023: भारतीय संस्कृति और सामान्य जनता के प्रतिनिधि के रूप में 10 वर्ष स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बन कर सरल जीवन और उच्च विचार से देश की सेवा करने वाले डा. राजेन्द्र प्रसाद सादगी और सच्चाई के अवतार थे। उन्होंने जीवनभर विदेशी वस्त्र न पहन कर देशवासियों को स्वदेशी वस्त्र पहनने का सन्देश दिया। अंदर और बाहर से एकसमान जीवन का निर्वाह करने से सभी सम्मान से इन्हें प्राय:‘राजेन्द्र बाबू कहकर बुलाते थे। असाधारण प्रतिभा, उनके स्वभाव का अनोखा माधुर्य, उनके चरित्र की विशालता और अति त्याग के गुण ने उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया था।
राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर, 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सीवान) के जीरादेई गांव में संस्कृत व फारसी के विद्वान पिता महादेव सहाय के घर धर्मपरायण माता कमलेश्वरी देवी की कोख से हुआ। राजेन्द्र बाबू अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के छात्र थे। पढ़ाई की तरफ इनका रुझान बचपन से ही था। इकोनॉमिक्स में एम.ए. और कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और पटना आकर वकालत करने लगे।
1914 में बिहार और बंगाल में आई बाढ़ में उन्होंने बढ़-चढ़ कर सेवा कार्य किया। बिहार के 1934 के भूकम्प के समय राजेन्द्र बाबू कारावास में थे। जेल से छूटने के पश्चात वह भूकम्प पीड़ितों के लिए धन जुटाने में जुट गए और इन्होंने वायसराय के जुटाए धन से कहीं अधिक व्यक्तिगत प्रयासों से जमा किया। चम्पारण आंदोलन के दौरान वह गांधी जी के वफादार साथी बन गए थे। गांधी जी के प्रभाव में आने के बाद इन्होंने एक नई ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। इस दौरान डा. प्रसाद को कई बार जेल जाना पड़ा। 1934 में इनको बम्बई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में इन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और गिरफ्तार हुए। 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली लेकिन संविधान सभा का गठन इससे कुछ समय पहले ही कर लिया गया था। देश के संविधान के निर्माण में भीमराव अम्बेडकर व डा. राजेन्द्र प्रसाद ने मुख्य भूमिका निभाई। डा. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय संविधान समिति के अध्यक्ष चुने गए और संविधान पर हस्ताक्षर करके इन्होंने ही इसे मान्यता दी।
26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने पर इन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार सम्भाला। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या अन्य किसी नेता को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहे। 1962 में डा. राधाकृष्णन जी के राष्ट्रपति चुने जाने पर पद त्याग कर वह पटना चले गए और बिहार विद्यापीठ सदाकत आश्रम में रहकर जन सेवा कर जीवन व्यतीत करने लगे। 28 फरवरी, 1963 को डा. प्रसाद का निधन हो गया। भारतीय राजनीतिक इतिहास में उनकी छवि एक महान और विनम्र राष्ट्रपति की है। राष्ट्रपति भवन के वैभवपूर्ण वातावरण में रहते हुए भी उन्होंने अपनी सादगी एवं पवित्रता को कभी भंग नहीं होने दिया।