Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Jan, 2024 09:39 AM
आजकल ‘मेरे पास समय नहीं है’, यह वाक्य जैसे आम बन गया हैं परन्तु व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक पूरा दिन 24 घंटे का होता है। यदि हम चाहें तो बहुत समय निकल सकता है परन्तु हम ऐसा नहीं करते और
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Smile please: आजकल ‘मेरे पास समय नहीं है’, यह वाक्य जैसे आम बन गया हैं परन्तु व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक पूरा दिन 24 घंटे का होता है। यदि हम चाहें तो बहुत समय निकल सकता है परन्तु हम ऐसा नहीं करते और केवल व्यस्त होने का दिखावा करके अंतत: खुद को ही मानसिक तनाव देकर नीचे गिरते रहते हैं।
यदि हम दिखावे के इन्हीं व्यस्तता भरे दिनों में से आधा घंटा भी स्वयं के लिए निकालें और एकान्त में बैठ कर स्वयं से पूछें कि ‘‘क्या मैं आत्मावलोकन करता हूं ? क्या कभी एकांत में बैठकर खुद से बात करता हूं ? समस्याओं के समाधान के बारे में सोचता हूं ? मेरी कौन-सी ऐसी समस्या है, जिससे मेरा मन अशांत होता है ? मेरे किसी कर्म से किसी और को कोई क्षति तो नहीं होती ? क्या मेरे सभी कार्य सकारात्मक हैं ? मैं क्यों इतना परेशान हूं ? क्यों मैं अपेक्षाओं और उपेक्षा में जीकर तनावमय जीवन जी रहा हूं ? कहां तक मैं औरों को सुख दे रहा हूं ?’’
सारे दिन में यदि आधा घंटा भी हम अपने आप को ऐसे दें तो काफी हद तक हम मानसिक तनाव से बच सकते हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि कैसे कई बड़े-बड़े मनीषियों, संगीतज्ञों, वैज्ञानिकों ने अपने जीवन में जो मुकाम प्राप्त किया, वह कई दिनों की एकांत साधना के द्वारा ही प्राप्त किया इसीलिए दुनिया की ऊहापोह से दूर होकर प्रतिदिन आधा घंटा एकांत में बैठने की आदत डालनी चाहिए। यह ‘एकांत’ मन की खुराक है। एकांत में ही ईश्वर में मन लगेगा और सर्वसिद्धि, सर्व-प्राप्तियां सहज ही प्राप्त हो सकेंगी।
आध्यात्मिक साधना में एकान्त का बड़ा महत्व है। एकान्त में मनुष्य अपने अंदर झांक कर श्रेष्ठता के स्रोत का अनुभव कर सकता है, उसे जीवन में उतार सकता है। मनुष्यात्मा में जो अनेक मौलिक व दिव्य शक्तियां समाई हुई हैं, आज वह उनका उपयोग इसीलिए नहीं कर पाता क्योंकि उसने अपने जीवन में एकान्त में जाना या रहना सीखा ही नहीं है।
संयोग से यदि वह कभी एकान्त में बैठ भी जाता है, तो अपने संस्कारवश पुन: बाह्य जगत की दुखदायी घटनाओं का ही चिन्तन करने लगता है, जो उसे उदासी, विषाद में ले जाकर डिप्रैशन का मरीज बना देती हैं इसलिए हमें जरूरत है अध्यात्मिक साधना एवं सकारात्मक चिन्तन द्वारा स्वयं के ‘शान्त स्वरूप’ व ‘एकान्त स्वरूप’ को जानने, पहचानने व अनुभव करने की, उसके पश्चात ही हम सही मायने में एकांतवास का लाभ उठा सकेंगे।