Ram mandir- इस तरह करीब 500 वर्ष से चले आ रहे रामलला मंदिर हेतु संघर्ष का समापन हुआ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Jan, 2024 08:50 AM

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अयोध्या में राम जन्म भूमि के संघर्ष की कहानी द्वापर युग के कुरुक्षेत्र रण में हुए महाभारत से कम नहीं थी। वास्तव में यह एक धर्म युद्ध ही था, जिसे श्रीराम लला के करोड़ों भक्तों की आस्था ने बहुत संघर्ष के उपरांत जीता

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Ayodhya Ram Mandir- अयोध्या में राम जन्म भूमि के संघर्ष की कहानी द्वापर युग के कुरुक्षेत्र रण में हुए महाभारत से कम नहीं थी। वास्तव में यह एक धर्म युद्ध ही था, जिसे श्रीराम लला के करोड़ों भक्तों की आस्था ने बहुत संघर्ष के उपरांत जीता। इतिहास में अनेकों ऐसी तारीखें मिलेंगी, जिनमें विदेशी आक्रांताओं ने भारत की अस्मिता व अखंडता को खंड-खंड करने के लिए भारत की गौरवमयी संस्कृति और अस्तित्व पर आघात किया। भारतीय संस्कृति धर्म पर आधारित है। विदेशी आक्रांताओं का मुख्य उद्देश्य भारतीय आस्था और आस्था के केंद्रों को धवस्त कर भारतीय संस्कृति के दुर्ग को ढहाना था, जिसके लिए उन्होंने मंदिरों पर हमला किया। काशी, मथुरा, सोमनाथ और अयोध्या के ध्वस्त हुए मंदिरों की गर्द आज भी इतिहास के पन्नों को धूमिल करती है, किंतु भारतीय हिंदू राष्ट्रीय स्वाभिमान को जीवंत रखने के लिए सदैव आत्मिक संघर्ष करता रहा।  

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सन् 1528 में जब बाबर ने अयोध्या में रामलला के मंदिर को तोड़ा, तो मात्र रामलला का मंदिर ही नहीं टूटा, बल्कि करोड़ों हिंदुओं के धैर्य का बांध टूटा। भारतीय हिंदू जनमानस के रोम-रोम में बसने करने वाले प्रभु श्रीराम का मंदिर तोड़ना भारतीय जनमानस की आस्था और हिंदुत्व को चुनौती थी। ‘धर्मो रक्षति रक्षित’ अर्थात ‘हम धर्म की रक्षा करेंगे, धर्म हमारी रक्षा करेगा’, इसी नीति को लेकर भारतीय जनमानस आगे बढ़ता और बाबरी मस्जिद के ढांचे को हटाने के लिए निरंतर प्रयास करता रहा।

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फिर वह तारीख आ गई, जिस दिन भारत आजाद हुआ। 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी के साथ ही भारतीय हिंदुओं की आत्मा जैसे एक नई ऊर्जा से भर गई। फिर वह दिव्य दिवस आया जिस दिन श्रीरामलला उस विवादित ढांचे में 23 दिसम्बर, 1949 को विराजमान किए गए लेकिन आजाद भारत में भी रामलला जन्मभूमि के लिए हिंदुओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा।

फिर यह विवादित मामला अदालत की दहलीज पर जा पहुंचा। हद तो तब हो गई, जब अदालत में भगवान श्री राम के अस्तित्व पर प्रश्न-चिन्ह लगाए गए। भगवान राम के अस्तित्व के प्रमाण साबित करने को कहा गया। जब श्री राम के अस्तित्व को मिथ्या कहा गया, तब हिंदुओं की आत्मा में चित्कार हुआ। चुनौतियां जैसे अजगर की भांति फन फैलाए सामने बैठी थीं, किंतु हिंदू का हौसला भी अधिक था।  

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सत्य है कि धर्म विचलित अवश्य हो सकता है, किंतु पराजित कदापि नहीं होता, इसलिए धर्म की जय तो होनी ही थी। 9 नवम्बर, 2019 को देश के सर्वोच्च न्यायालय में पांच जजों की खंडपीठ ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। अयोध्या परिसर की भूमि केवल रामलला मंदिर की है और न्यालय ने रामलला जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट निर्माण का आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार 5 फरवरी, 2020 को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन हुआ और 5 अगस्त, 2020 को श्री राम जन्म भूमि मंदिर का वैदिक विधि से विधिवत भूमि पूजन हुआ।  इस भूमि पूजन के साथ मंदिर निर्माण का शुभ कार्य प्रारंभ किया गया। इस प्रकार करीब 500 वर्ष से चले आ रहे रामलला मंदिर हेतु संघर्ष का समापन हुआ।

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विश्व के इतिहास में इतना बड़ा राष्ट्रीय धार्मिक संघर्ष अपने आप में एक बड़ी व्यथा की कथा है। श्री राम भारत की आत्मा में संचारित होते हैं। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण तथा तुलसीकृत श्री रामचरित मानस प्रमाण है कि श्री राम का चरित्र, राष्ट्र चरित्र निर्माण का आधार है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का नाम प्रत्येक राम भक्तों के स्वास-स्वास, रोम-रोम में जन्म से मृत्युपर्यंत गूंजता है। राम संपूर्ण भारतवर्ष को एकता के सूत्र और मर्यादाओं की सीमाओं में बांध कर रखने वाले सूत्रधार हैं। राम मंदिर का पुन: निर्माण न केवल बाबरी मानसिकता को चकनाचूर करना है, अपितु सर्वशक्ति- सर्वसंपन्न राष्ट्र की आधारशिला रखना भी था। यह वह कदम था, जो रामराज्य स्थापना की ओर उठाया जा रहा था। अयोध्या की भूमि पर रामलला का मंदिर न केवल राष्ट्रीय गौरव है, बल्कि श्रीराम के मर्यादा और संस्कारों का राष्ट्रीय प्रतीक है।

-साध्वी कमल वैष्णव (लेखिका निर्मोही अखाड़े से हैं)

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