Ramayan: चंद्रमा में दाग होने का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jun, 2023 09:58 AM

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अहिल्या ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थीं। सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी ने एक स्त्री का निर्माण किया जिन्हें वे अहिल्या के नाम से पुकारते थे। अहिल्या अत्यंत रूपवान थी तथा उन्हें यह वरदान प्राप्त था कि

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Ramayan: अहिल्या ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थीं। सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी ने एक स्त्री का निर्माण किया जिन्हें वे अहिल्या के नाम से पुकारते थे। अहिल्या अत्यंत रूपवान थी तथा उन्हें यह वरदान प्राप्त था कि उनका यौवन सदा बना रहेगा। उनकी सुंदरता के सामने स्वर्ग लोक की अप्सराएं  भी फीकी नजर आती थीं। अहिल्या की सुंदरता के कारण सभी देवता उन्हें पाने की इच्छा रखते थे। 

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ब्रह्मा जी ने अहिल्या की शादी के लिए एक परीक्षा का आयोजन किया जिसके विजेता से वह अहिल्या की शादी रचना चाहते थे। सभी देवताओं को निमंत्रण दिया गया। सभी देवता उस परीक्षा के लिए उपस्थित हुए। महर्षि गौतम ने यह परीक्षा उत्तीर्ण की इसी कारण अहिल्या का विवाह विधिपूर्वक महर्षि गौतम के साथ हुआ। 

इंद्र देव अहिल्या की सुंदरता पर अत्यधिक मोहित हुए। एक दिन इच्छा के वशीभूत इंद्र देव पृथ्वी लोक में अहिल्या से मिलने चले आए। महर्षि गौतम के रहते इंद्र देव कोई दु:साहस न कर सके। 

इंद्र देव ने अहिल्या से मिलने के लिए एक योजना बनाई तथा चंद्रमा उस योजना में शामिल किया कि जब महर्षि गौतम प्रात:काल गंगा स्नान के लिए जाएंगे तो उस समय का लाभ उठाकर वह अहिल्या को प्राप्त कर लेंगे। 

योजना के अनुसार चंद्र देव ने अर्धरात्रि को मुर्गे की बांग दी। गौतम महर्षि समझे कि सवेरा हो चला है। वह तुरंत उठे तथा गंगा तट पर स्नान करने चले गए। 

महर्षि गौतम के जाते ही इंद्र देव ने गौतम महर्षि का रूप धारण कर घर में प्रवेश किया तथा पहरेदारी के लिए चंदमा को घर के बाहर बैठा दिया। ऋषि गौतम जब गंगा तट पर पहुंचे तो उन्हें अलग ही आभास हुआ तथा उनके मन में संदेह भी उत्पन्न हुआ। तब गंगा मैया ने प्रकट होकर महर्षि को बतलाया कि यह सब इंद्र देव का बुना जाल है। अहिल्या की सुंदरता से मोहित होकर कुकृत्य की भावना से इंद्र पृथ्वीलोक पर आए हैं। 

यह सुन कर क्रोधित महर्षि गौतम तेजी से अपनी कुटिया की तरफ आए। जब उन्होंने कुटिया के बाहर चंद्रमा को बैठे देखा तो गुस्से में महर्षि गौतम ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि राहू की कुदृष्टि तुम पर सदा बनी रहेगी। इसी श्राप के कारण चंद्रमा को ग्रहण लगता है। गुस्से से लाल-पीले महर्षि गौतम ने अपने कमंडल से चंद्रमा पर प्रहार किया। इसी कारण चंद्रमा में दाग है।

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इंद्र देव को महर्षि गौतम के आने का आभास होते ही वह वहां से भागने लगे। महर्षि गौतम ने इंद्र को श्राप दिया तथा पृथ्वीलोक में पूजा न होने की बात कही। वहां से भागते समय इंद्रदेव अपने असली रूप में आ गए। 

अहिल्या की कोई गलती नहीं थी। उनके साथ तो इंद्र देव ने छल किया था परंतु क्रोध के आवेश में महर्षि गौतम ने अहिल्या को अनंत काल तक शिला का रूप धारण करने का श्राप दे दिया परंतु जब महर्षि गौतम का गुस्सा शांत हुआ तब उन्हें आभास हुआ कि इस सारे प्रकरण में अहिल्या की तो कोई गलती नहीं थी। 

उन्होंने जो श्राप अहिल्या को दिया था उससे उन्हें काफी दुख हुआ परंतु  वह अपना श्राप वापस नहीं ले सकते थे। तब उन्होंने अहिल्या की शिला से कहा जब तुम्हारी शिला पर किसी दिव्य आत्मा के चरणों की धूल स्पर्श करेगी तब तुम अपने असली रूप में आ जाओगी। इतना कह महर्षि गौतम वहां से चले गए।

युग बीत जाने पर महर्षि विश्वामित्र राक्षसी ताड़का वध के लिए अयोध्या से प्रभु श्री राम एवं उनके भाई लक्ष्मण को अपने साथ लेकर आए। ताड़का वध के बाद भगवान श्री राम की वन में एक तरफ वीरान पड़ी कुटिया पर पड़ी तो वह वहां गए तथा अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र से पूछा गुरुवर यह अत्यंत सुंदर कुटिया किसकी है, जहां इतनी वीरानी है। प्रतीत होता है कि युगों से यहां कोई आया-गया नहीं है। कोई पशु-पक्षी भी इस सुंदर कुटिया में नजर नहीं आ रहा। आखिर इसका क्या कारण है इस रहस्य को बताइए। 

तब महर्षि विश्वामित्र ने कहा हे प्रभु यह कुटिया वर्षों से आपके आने का इंतजार कर रही हैं।  इस कुटिया में आप जो शिला देख रहे हैं यह आपके चरणों की धूल का युगों से इंतजार कर रही है। 

भगवान श्री राम ने महर्षि विश्वामित्र से पूछा आखिर इतने वर्षों से यह शिला क्यों मेरी चरण रज का इंतजार कर रही है। इतना सुनकर महर्षि विश्वामित्र ने भगवान श्री राम एवं लक्ष्मण जी को अहिल्या की पूरी कथा सुनाई। पूरी कथा सुनने के बाद भगवान श्री राम ने अपने चरणों से उस शिला का स्पर्श किया। चरणों के स्पर्श से शिला अहिल्या के रूप में परिवर्तित हो गई। 

उस अवसर पर भगवान श्री राम ने अहिल्या से कहा कि इस सारे प्रकरण  में आपका कोई दोष नहीं। अब गौतम महर्षि भी आपसे क्रोधित नहीं हैं। अहिल्या के वास्तविक रूप में आते ही वीरान कुटिया में फिर से बहार आ गई। पक्षी चहचहाने लगे। इस प्रकार भगवान श्री राम ने देवी अहिल्या का उद्धार किया। सभी योगी जन इसी राम नाम का जाप करते हुए परम सत्य को पाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। राम नाम रहस्यपूर्ण व गूढ़ होने पर भी मधुर, मनमोहक व कल्याणकारी है।

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