Ramayan: अपने पति की खुशी के लिए कुंभकरण की तरह लंबी नींद सोई थी ये देवी, पढ़ें रामायण की सुंदर कथा

Edited By Updated: 28 Jun, 2025 01:53 PM

ramayan urmila story

Ramayan urmila story: उर्मिला ने 14 साल तक सोकर एक महान बलिदान दिया ताकि लक्ष्मण जाग सकें और अपने वनवास के दौरान राम और सीता की रक्षा कर सकें। इस नींद को अक्सर उर्मिला निद्रा के रूप में जाना जाता है। निद्रा की देवी ने उर्मिला की इच्छा पूरी की, वनवास...

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Ramayan urmila story: उर्मिला ने 14 साल तक सोकर एक महान बलिदान दिया ताकि लक्ष्मण जाग सकें और अपने वनवास के दौरान राम और सीता की रक्षा कर सकें। इस नींद को अक्सर उर्मिला निद्रा के रूप में जाना जाता है। निद्रा की देवी ने उर्मिला की इच्छा पूरी की, वनवास की अवधि के लिए लक्ष्मण की नींद छीन ली और उसे उर्मिला को सौंप दिया। लक्ष्मण के वनवास से लौटने पर ही उर्मिला की निद्रा खुली थी।

Ramayan urmila story
विधि की यह कैसी विडम्बना है कि कुछ लोगों को अत्यधिक यश मिलता है तो कुछ को कम और कुछ को बिल्कुल ही नहीं। ऐसा सदा से होता आया है। रामायण में ऐसा ही लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला के साथ हुआ है। वैसे श्री राम परिवार के सब सदस्य विद्वान, ज्ञानी, त्यागी तथा परोपकारी हैं। जिनका जीवन प्रेरणादायक है परन्तु कुछ पात्रों की अत्यधिक चर्चा, प्रशंसा व गुणगान हुए हैं जैसे राम, सीता, भरत और लक्ष्मण जी और कुछ को बिल्कुल भुला दिया गया है। इनमें से एक हैं उर्मिला। वैसे शत्रुघ्न जी और इनकी पत्नी श्रुतकीर्ति तथा भरत जी की पत्नी मांडवी का भी कोई विशेष उल्लेख नहीं हुआ है।

उर्मिला की ओर न तो आदि कवि वाल्मीकि का ध्यान गया और न ही तुलसीदास व अन्य किसी रामायण के लेखक का। उर्मिला का तप, त्याग और शारीरिक संयम किसी से कम नहीं है क्योंकि उन्होंने चौदह वर्ष पति की जुदाई में तपस्विनी बन कर महल में बिताए। वह राजर्षि महाराजा जनक की पुत्री तथा सीता की छोटी बहन थीं। उन्हें भी वही शिक्षा एवं संस्कार प्राप्त हुए थे जो सीता जी को मिले थे परंतु उर्मिला जी का बलिदान महल की चारदीवारी में बंद होकर रह गया जबकि सीता, भरत तथा लक्ष्मण का त्याग महलों से बाहर था जो जगजाहिर हो गया।

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जब लक्ष्मण जी वन जाने से पहले उर्मिला जी से मिलने आए और कहा कि वह चाहें तो उनके साथ जा सकती हैं। देवी उर्मिला ने उत्तर दिया,‘‘आप सेवक के रूप में वन जा रहे हैं। सेवक का कदापि यह धर्म नहीं है कि अपनी पत्नी को साथ ले जाए। फिर जिस कर्तव्य को आप निभाने जा रहे हैं, मेरी उपस्थिति और प्यार उसमें बांधा डालेंगे, इसलिए मुझे आपकी जुदाई में बेशक कितना ही घुलना पड़े, मैं साथ जाकर आप के इस पवित्र कार्य में रोड़ा डालने का पाप अपने सिर पर नहीं ले सकती।’’

एक किंवदंती यह भी कहती है कि उर्मिला ने 14 साल तक सोकर एक महान बलिदान दिया ताकि लक्ष्मण जाग सकें और अपने वनवास के दौरान राम और सीता की रक्षा कर सकें।

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इस नींद को अक्सर ‘उर्मिला निद्रा’ के रूप में जाना जाता है। निद्रा की देवी ने उर्मिला की इच्छा पूरी की, वनवास की अवधि के लिए लक्ष्मण की नींद छीन ली और उसे उर्मिला को सौंप दिया। लक्ष्मण के वनवास से लौटने पर ही उर्मिला की निद्रा खुली थी। विचारकों की उर्मिला के प्रति उदासीनता को देखते हुए हिन्दी कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ने लिखा कि, ‘‘सीता जी को राम अपने साथ ले गए। उन्हें मानो विरह की पीड़ा से छुटकारा मिला परंतु उर्मिला के भाग्य में यह बात नहीं थी। वह लक्ष्मण के कर्तव्य पालन में रुकावट नहीं बनना चाहती थीं।’’

लक्ष्मण जी यदि उर्मिला को अपने साथ ले जाते तो वह कोई महान कार्य न कर पाते। न ही उर्मिला ने साथ जाने के लिए जोर डाला। उन्होंने महल में रहते हुए पतिव्रत करके अपने प्राणों को सुखा डाला और सांसों की सेवा में तप, त्याग और संयम में रहते हुए चौदह वर्ष काट डाले।

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यही बात श्री रविंद्र नाथ टैगोर ने एक बार कही। उन्होंने कवियों की प्रेरणा देते हुए अयोध्या सिंह उपाध्याय की तरह कहा कि उर्मिला की विरह व्यथा पर भी प्रकाश डाला जाए। वह क्यों सबकी नजरों से ओझल रहे।

टैगोर से प्रेरणा पाकर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘साकेत’ नाम से एक काव्य लिखा जिसमें उन्होंने उर्मिला को लक्ष्मण के वियोग में चौदह वर्ष की विरह पीड़ा का ही चित्र पेश किया और उर्मिला की करुणा दशा पर बार-बार आंसू बहाए हैं।

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गुप्त जी ने विरह वेदना का इतना मार्मिक चित्रण किया है कि वह भावावेश में सीमा को भी पार कर गए। एक जगह वह उर्मिला के मुख से कहलवाते हैं प्यारे प्रियतम के बिना सब भोग व्यर्थ हैं। मुझे दूध से क्या मेरी आंखों का पानी ही क्या कम है। दीपक भी जलता है और पतंगा भी जलता है। दीपक जलता है तो प्रकाश भी देता है और यश प्राप्त करता है परंतु पतंगा तो प्रारब्ध का मारा जल मरता है। पतंगा जले न तो क्या करे। क्या वह प्रेम छोड़कर व्यर्थ जीता रहे। सीता को वन में राम के साथ जाकर यश मिला परंतु मुझ दुर्भाग्यिनी के लिए तो रो-रो कर मरना ही प्रारब्ध में लिखा है।

जिस दिन उर्मिला का वियोग समाप्त हुआ वह दीवाली का दिन था। वह उनके जीवन का सुख व प्रसन्नता भरा दिन था। हम दीवाली के दिन राम, सीता लक्ष्मण व भरत के साथ इस देवी को भी याद कर लिया करें और इससे प्रेरणा प्राप्त करें, यही उर्मिला के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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