Religious Katha: धरती पर लें जन्नत का आनंद

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Feb, 2024 08:10 AM

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स्वाभिमान से अभिप्राय है-स्वयं से प्रेम करना सीखें, स्वयं का ध्यान रखें, स्वयं का सत्कार करें, स्वयं पर विश्वास रखें और स्वयं के महत्व को अनुभव करें। स्वाभिमान मनोबल बढ़ाता है और लक्ष्य प्राप्त करने की सामर्थ्य प्रदान करता है, चाहे वह आध्यात्मिक...

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Religious Katha: स्वाभिमान से अभिप्राय है-स्वयं से प्रेम करना सीखें, स्वयं का ध्यान रखें, स्वयं का सत्कार करें, स्वयं पर विश्वास रखें और स्वयं के महत्व को अनुभव करें। स्वाभिमान मनोबल बढ़ाता है और लक्ष्य प्राप्त करने की सामर्थ्य प्रदान करता है, चाहे वह आध्यात्मिक विकास हो अथवा भौतिक लक्ष्य।

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स्वाभिमान, आशावादी दृष्टिकोण का पर्यायवाची भी कहा जा सकता है क्योंकि जब आदमी को खुद पर भरोसा होता है, वह हर परिस्थिति का हिम्मत से सामना करता है। वह हमेशा आंतरिक शक्ति से लबालब होता है। इसके विपरीत, जो उसको नीचा भी दिखाना चाहते हैं, वह उन्हीं का आदर्श भी बन जाता है क्योंकि वह न तो अभिमानी होता है और न ही अभिमानी व्यक्ति को अपने पर हावी होने देता है।

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स्वाभिमानी व्यक्ति अपने समाज और राष्ट्र का नाम भी ऊंचा करता है। इसका जीवंत उदाहरण स्वामी विवेकानंद जी हैं, जिन्होंने यूरोप और अमरीका में स्वाभिमान के साथ भारत की महिमा का गुणगान गाया।

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एक बार इंगलैंड में स्वामी जी से किसी ने पूछा कि आपकी औरतें हाथ क्यों नहीं मिलातीं। इस पर स्वामी जी ने पलटकर प्रश्न किया कि क्या इंगलैंड की महारानी सबसे हाथ मिलाती है तो सवाल पूछने वाले ने ‘न’ में जवाब दिया। स्वामी जी ने तपाक से कहा कि हिन्दोस्तान की प्रत्येक नारी महारानी है और वह हाथ नहीं मिलाती।

इस तरह स्वाभिमान के धनी स्वामी विवेकानंद ने उनसे सवाल पूछने वाले को ही निरुत्तर कर दिया।

स्वाभिमानी व्यक्ति कभी भी इस बात से व्यथित अथवा प्रभावित नहीं होते कि जमाना क्या कहेगा। दुनिया का तो यह दस्तूर है कि वह नाकामयाब लोगों का मजाक उड़ाती है और कामयाब लोगों से जलती है। वास्तव में असली जिंदगी तो तभी शुरू होती है, जब हम अपने स्वाभिमान से जीना सीखें और दूसरों की सोच के मुताबिक जीना छोड़ दें। स्वाभिमान आत्मबल और आत्मविश्वास का भी परिचायक है।

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एक चित्रकार रबींद्रनाथ टैगोर के काफी करीब था। वह हमेशा इस बात से परेशान रहता कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। उसका स्वाभिमान जगाने के लिए टैगोर ने एक तरकीब सोची। उन्होंने अपना एक चित्र बनवाया और चित्रकार को सलाह दी कि वह इस चित्र के साथ टैगोर की असली फोटो, खाली कागज एवं पैसिल को बाजार में रख दे।

कागज पर लिखा जाए कि बनाए गए चित्र में अगर कोई नुक्स नजर आए तो पैंसिल से निशान लगाओ और खाली कागज पर उसे सही करके दिखाओ। शाम को देखा कि चित्र तो पैंसिल के निशानों से भरा पड़ा था लेकिन कागज ज्यों का त्यों ही था क्योंकि चित्र की खराबी को कैसे ठीक करना है, किसी ने नहीं बताया था।

टैगोर कहते हैं कि दोष निकालना आसान है, इसलिए व्यक्ति अपने प्रति सजग और ईमानदार रहे। उन्होंने चित्रकार को सलाह दी वह दूसरों की बातों से परेशान होकर नहीं, स्वाभिमान के साथ जिंदगी जिए।

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