Sachindra nath Bakshi birthday: आज मनाया जाएगा काकोरी कांड के नायक शचीन्द्रनाथ बख्शी का जन्मदिवस, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Dec, 2023 10:47 AM

sachindranath bakshi birthday

शचीन्द्रनाथ बख्शी का जन्म 25 दिसंबर, 1904 को बनारस के संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। उन्होंने एफ.ए. (इंटरमीडिएट) की पढ़ाई छोड़कर क्रांतिकारी

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Sachindranath Bakshi birthday: शचीन्द्रनाथ बख्शी का जन्म 25 दिसंबर, 1904 को बनारस के संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। उन्होंने एफ.ए. (इंटरमीडिएट) की पढ़ाई छोड़कर क्रांतिकारी कार्य करने की सोची। इस उद्देश्य से उन्होंने पहले सैंट्रल हैल्थ इ प्रूविंग सोसाइटी बनाई, फिर सैंट्रल हैल्थ यूनियन का गठन किया। हैल्थ यूनियन के बैनर तले उन्होंने बनारस के नवयुवकों को संगठित किया और तैराकी की कई प्रतियोगिताएं आयोजित कीं।

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1922 में जब वाराणसी में अनुशीलन समिति की शाखा खुली तो ये उससे जुड़ गए और उसके माध्यम से नए क्रांतिकारियों की भर्ती और प्रशिक्षण केन्द्रों का प्रबन्ध करने लगे। ब्रिटिश पुलिस इनके पीछे लग गई, तो इन्होंने बनारस छोड़कर लखनऊ को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बना लिया। 1923 में दिल्ली की स्पैशल कांग्रेस के दौरान वह बिस्मिल के संपर्क में आए। वह उनकी क्रांतिकारी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए और इस संस्था का कार्य लखनऊ में खड़ा करने का बीड़ा उठाया। बनारस और लखनऊ में इनके संगठन कौशल को देखकर इन्हें झांसी में भी कार्य विस्तार की जिम्मेदारी दी गई।

9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के पास काकोरी में 8 डाऊन पैसेंजर ट्रेन रोककर क्रांतिकारी कार्यों के लिए ब्रिटिश खजाना लूटा गया। इस अभियान के समय बख्शी, अशफाक और राजेन्द्र लाहिड़ी द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में बैठे थे। अशफाक और लाहिड़ी के जिस में रेल रोकने तथा बख्शी पर काम पूरा होने तक गार्ड को अपने कब्जे में रखने की जिम्मेदारी थी। सबने अपना काम ठीक से किया, जिससे यह अभियान पूरी तरह सफल हुआ। जनता में इस समाचार से प्रसन्नता की लहर दौड़ गई, पर इससे ब्रिटिश शासन बौखला गया। पुलिस ने चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां और बख्शी जी को छोड़कर शेष सबको पकड़ लिया। बख्शी ने काकोरी कांड में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया था, परंतु पुलिस के हाथ नहीं आए और बिहार में पार्टी का कार्य छुपे तौर पर करते रहे। इन सभी पर काकोरी षडयंत्र का ऐतिहासिक मुकद्दमा चलाया गया।

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आजाद पुलिस के साथ मुठभेड़ में खुद ही शहीद हो गए। अशफाक दिल्ली एवं बख्शी को 1927 में भागलपुर में बंदी बना लिया गया। 13 जुलाई, 1927 को अशफाक को फांसी तथा बख्शी को आजीवन कारावास की सजा मिली। जेल में भी इनकी संघर्ष क्षमता कम नहीं हुई, बंदियो के अधिकार एवं उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं के लिए हुए संघर्षों में ये सदा आगे रहते थे। इसके लिए उत्तर प्रदेश की बरेली जेल में इन्होंने 53 दिन का ऐतिहासिक अनशन किया। 1937 में जेल से छूटकर आए तो कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और पूरी निष्ठा से काम किया। स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात गरीबी में भी हंसते हुए गुजारा किया किसी से कोई शिकायत न की, परन्तु कांग्रेस की आपाधापी और आदर्श-भ्रष्टता से ऊबकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और जनसंघ में चले गए।

जनसंघ के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा। 1969 में बनारस दक्षिण से कमयुनिस्ट नेता को हराकर विधानसभा का चुनाव जीत उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए और लखनऊ जाकर रहने लगे। अपने जीवन काल में उन्होंने दो पुस्तकें भी लिखीं। सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) में 80 वर्ष की आयु में 23 नवंबर, 1984 को उनका निधन हुआ।

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