संकटमोचन की ये स्तुति दिलाएगी हर कष्ट से मुक्ति

Edited By Jyoti,Updated: 31 Aug, 2019 11:35 AM

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शनिवार का दिन शनि देव की पूजा के साथ-साथ बजरंगबली की पूजा के लिए भी शुभकारक मानी जाती है। कहते हैं इनकी पूजा से जातक के जीवन की हर प्रॉबल्म का समाधान हो जाता है।

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शनिवार का दिन शनि देव की पूजा के साथ-साथ बजरंगबली की पूजा के लिए भी शुभकारक मानी जाती है। कहते हैं इनकी पूजा से जातक के जीवन की हर प्रॉबल्म का समाधान हो जाता है। यही कारण है कि जब भी कोई व्यक्ति किसी प्रकार के संकट में होता है तो सबसे पहले इन्हीं की शरण में जाता है। क्योंकि मान्यता है कि संकटमोचन अपने भक्तों को जब भी किसी समस्या में देखते हैं तो खुद किसी न किसी रूप में आकर उसके संकटों को हर लेता है।
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तो अगर आपकी लाइफ को भी परेशानियों ने हर तरफ़ से घेर रखा है तो शनिवार का दिन हनुमान जी की कृपा पाने और उनको प्रसन्न करने के लिए सबसे परफेक्ट है। लेकिन कुछ लोग का अब ये सवाल होगा कि आख़िर इन्हें खुश किया कैसे जाए तो आपको बता दें इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की ज़रूरत नहीं है बल्कि केवल संकटमोचन की छोटी से स्तुति से आपका बेड़ा पार हो सकता है। तो चलिए आपको बताते हैं इस चमत्कारी स्तुति के बारे में-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिवार के दिन सुबह एवं शाम को दोनों समय हनुमान मंदिर में जाकर सबसे पहले गाय के घी का एक दीपक जला दें और हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष सिंदूर या कुशा के आसन पर बैठकर निम्न स्तुति का पाठ करें। स्तुति का पाठ पूरा करने के बाद 1 बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ एवं श्री हनुमत आरती भी अवश्य करें। 

।। अथ हनुमान स्तुति ।।
बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी विनती तब, छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीश यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
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रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सो कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगिसु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।
आनि संजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।

रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।

बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।

काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।

।। दोहा ।।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।

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