आत्म-प्रबंधन से केवल व्यक्ति का ही नहीं, समाज और राष्ट्र का भी होता है कल्याण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Feb, 2018 12:47 PM

self management is not only for individual welfare but also for society welfare

आज के युग प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न प्रकार के कार्यों में कुछ इस कदर व्यस्थ है कि मावन जीवनकाल के आधारभूत अात्मतत्व विस्मृत होते जा रहे हैं। मावन सभी की समस्त अपेक्षाओं के पूरा करते-करते स्वयं की उपेक्षा करता है।

आज के युग प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न प्रकार के कार्यों में कुछ इस कदर व्यस्थ है कि मावन जीवनकाल के आधारभूत अात्मतत्व विस्मृत होते जा रहे हैं। मावन सभी की समस्त अपेक्षाओं के पूरा करते-करते स्वयं की उपेक्षा करता है। इसमें न केवल शरीर बल्कि मन से लेकर आत्मा भी सम्मलित है। इसके कारण ही मानन-जीवन चिंतामग्न, तनावग्रस्त व व्यग्र हो जाता है। इसका परिणाम हमें समाज में बढ़ते एकाकीपन तथा मूल्यहीनता के रूप में देख सकते हैं। आज के इस भागदौड़ भरे जीवन काल में मानव इधर-उधर भागते हुए श्रम करता है, फिर भी उसकी आधारभूत मूल उत्पादकता शून्यता की ओर बढ़ रही है। जीनम का दीर्घ कालखंड बिताने का बाद जब व्यक्ति स्वयं के जीवन का अवलोकर करता है तो उसे एक अपूर्णनीय खालीपन दिखाई पड़ता है। 


इस रिक्ति का कारण व्यक्ति में आत्म-प्रबंधन का अभाव है। व्यक्ति अन्य अनेक कार्यों का प्रबंधक तो बनता है, पर अपने जीवन व अपने मानस के प्रबंधन में असफल होता है और यही प्रबंधन की असफलता उसे आत्मस्थ नहीं होने देती और वह अवसाद का शिकार हो मानसिक पीड़ा भोगते हुए एकाकी जीवन जीने को विवश होता है। एकाकीपन असुरक्षा की भावना को जन्म देता है और यह भावना विभिन्न सामाजिक अपराधों का कारण बनती है।

 

इस प्रकार पूरा समाज इससे प्रभावित होता है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को बताया गया ज्ञान, भक्ति और कर्म का मार्ग उपदेश मात्र नहीं, बल्कि जीवन-व्यवस्थापन का गूढ़तम सूत्र है। आज व्यक्ति में आत्म-प्रबंधन की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि व्यक्ति के आत्म-प्रबंधन द्वारा समाज व राष्ट्र का आत्म-प्रबंधन होता है और विभिन्न पारिवारिक व सामाजिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है। जीवन सहज, सरस होता है। स्पष्ट है कि आत्म-प्रबंधन से व्यक्ति का ही नहीं, समाज और राष्ट्र का भी कल्याण होता है। वस्तुत: आत्म-प्रबंधन से आत्मानुशासन आता है।

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