Edited By Jyoti,Updated: 01 Jan, 2020 02:50 PM

श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म का बहुत ही पावन ग्रंथ है। जिसमें श्लोकों की भरमार हैं। इन श्लोकों के द्वारा श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान प्रदान किया।
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श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म का बहुत ही पावन ग्रंथ है। जिसमें श्लोकों की भरमार हैं। इन श्लोकों के द्वारा श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान प्रदान किया। इसी ज्ञान मके मार्ग पर चलकर अर्जुन ने ना केवल महाभारत का युद्ध जीता बल्कि जीवन में आगे बढ़ने की एक नहीं बल्कि अनेकों सीख प्राप्त की। आज नए साल के इस शुभ अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक के एक बारे में। कहा जाता है हिंदू धर्म का इस ग्रंथ यानि श्रीमद भगवत गीता के हर श्लोक में मनुष्य जीवन की किसी न किसी समस्या का हल छिपा है। बता दें इसमें कुल गीता के 18 अध्याय और 700 गीता श्लोक हैं। जिनमें कर्म, धर्म, कर्मफल, जन्म, मृत्यु, सत्य, असत्य आदि जीवन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर भी मौज़ूद हैं।

शास्त्री भाषा में कहें तो गीता में वर्णित समस्त श्लोक श्री कृष्ण ने अर्जुन को उस समय सुनाए जब महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण अर्जुन को गीता श्लोक सुनाकर उन्हें उनका कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण द्वारा इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है।
इससे पहले कि हम उस श्लोक के बारे में बताएं यहां जानें श्रीमद्भागवत गीता के पहले श्लोक का महत्व-
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे् समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥१॥
धृतराष्ट्र संजय से कहते हैं, हे संजय! धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
तात्पर्य- भगवद् गीता एक बहुतपठित आस्तिक की विज्ञान है जो गीता-महात्म्य में सार रूप में दिया हुआ है।
उल्लेख- मनुष्य को चाहिए कि वह श्री कृष्ण के भक्त की सहायता से शिक्षण करते हुए भगवद्गीता का अध्ययन करें और स्वार्थ प्रेरित व्याख्याओं के बिना उसे समझने का प्रयास करें। जिस प्रकार अर्जुन ने साक्षात भगवान कृष्ण से श्री गीता सुनी और उनके द्वारा दिए गए उपदशों को ग्रहण किया ठीक उसी प्रकार हमें भी करना चाहिए।

इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते ।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥६७॥
अर्थात- जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती है, वैसे ही विषयों मे विचरती हुई इन्द्रियों वाला मन इस अयुक्त पुरुष को (उसकी बुद्धि को) हर लेता है।