Shrinathji Temple Nathdwara: नाथद्वारा के मंदिर में जन्माष्टमी पर कान्हा जी को समर्पित होंगे 56 अनोखे व्यंजन

Edited By Updated: 13 Aug, 2025 07:01 AM

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Shrinathji Temple Nathdwara:  राजस्थान में बसा नाथद्वारा सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भक्ति, संस्कृति और परंपरा का अद्भुत मेल है। यहां भगवान श्रीकृष्ण को श्रीनाथजी के स्वरूप में पूजा जाता है और यह स्थान पुष्टिमार्ग की वैष्णव परंपरा का...

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Shrinathji Temple Nathdwara:  राजस्थान में बसा नाथद्वारा सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भक्ति, संस्कृति और परंपरा का अद्भुत मेल है। यहां भगवान श्रीकृष्ण को श्रीनाथजी के स्वरूप में पूजा जाता है और यह स्थान पुष्टिमार्ग की वैष्णव परंपरा का प्रमुख केंद्र माना जाता है।जन्माष्टमी का पर्व नाथद्वारा में बेहद भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं ताकि वे श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में शामिल होकर पुण्य कमा सकें। मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और भगवान का श्रंगार मन मोह लेने वाला होता है।

नाथद्वारा की सबसे खास परंपरा है छप्पन भोग यानी 56 तरह के स्वादिष्ट और विविध व्यंजन भगवान श्रीनाथजी को अर्पित किए जाते हैं। ये भोग न केवल पकवानों की विविधता को दर्शाते हैं बल्कि भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति की गहराई को भी जाहिर करते हैं। इस अवसर पर मंदिर में घंटों तक भजन-कीर्तन चलते हैं, जिसमें भक्तगण भक्ति में लीन होकर श्रीकृष्ण के नाम का गुणगान करते हैं। हर कोना भक्ति और उल्लास से सराबोर होता है, और पूरी नगरी एक आध्यात्मिक उत्सव में डूब जाती है। नाथद्वारा में जन्माष्टमी का यह पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो जीवनभर याद रहता है।

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मंदिर का इतिहास
नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी मंदिर
में भगवान श्रीकृष्ण की बाल अवस्था की पूजा की जाती है। यहाँ श्रीकृष्ण का एक विशेष रूप बालक रूप में श्रीनाथजी के रूप में विराजित है। ऐसा विश्वास है कि यह मूर्ति स्वयं गोवर्धन पर्वत से प्रकट हुई थी। मुगल सम्राट औरंगजेब के दौर में जब अनेक हिंदू मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट किया जा रहा था, तब भक्तों ने श्रीनाथजी की मूर्ति को वृंदावन से एक सुरक्षित स्थान की ओर ले जाना शुरू किया। यात्रा के दौरान, जब रथ नाथद्वारा के पास सिंगार गांव पहुंचा, तब उसका पहिया कीचड़ में धस गया और आगे नहीं बढ़ा। इसे भगवान की इच्छा का संकेत माना गया कि वे यहीं विराजना चाहते हैं। इसी कारण उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया, जो आज नाथद्वारा मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है।

स्वर्ग से सुन्दर होता है जन्माष्टमी की रात का आयोजन
हर साल जन्माष्टमी के पर्व पर, रात के ठीक 12 बजे श्रीनाथजी का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस शुभ घड़ी में विशेष मंगल आरती होती है, जो पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है। भक्तजन भगवान श्रीनाथजी के दर्शन करते हैं, जो फूलों और चांदी-सोने के आभूषणों से सुशोभित होते हैं। ढोल, नगाड़े, शंख और घंटियों की गूंज से मंदिर परिसर में भक्ति का माहौल और भी गहराता है और हर कोई भगवान के जन्म का आनंद उल्लासपूर्वक मनाता है।

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कान्हा जी को लगाया जाता है छप्पन भोग
नाथद्वारा में छप्पन भोग की परंपरा एक खास धार्मिक मान्यता से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा के समय लगातार सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाए रखा था, तब उनकी थकान और भूख को शांत करने के लिए माता यशोदा ने 56 तरह के व्यंजन तैयार किए थे। इसी स्मृति में, नाथद्वारा में हर वर्ष जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्रीनाथजी को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है। इस भोग में तरह-तरह की मिठाइयां, नमकीन, पेय पदार्थ और मुख्य भोजन के अनेक प्रकार शामिल होते हैं। यह परंपरा न केवल श्रद्धा का प्रतीक है  बल्कि भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति को भी दर्शाती है।

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