Happy Baisakhi: भविष्य की योजनाएं तैयार करने का दिन

Edited By Updated: 12 Apr, 2025 09:24 AM

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Special story on baisakhi khalsa sajna Diwas- वैसाखी भारतवासियों का सदियों पुराना त्यौहार है। यह त्यौहार विक्रमी संवत के बैसाख महीने की संक्रांति को मनाया जाता है। यह मौसमी त्यौहार है। किसान अपनी पकी फसल को देखकर आनंदित हो जाता है। नई फसल की आमद हर...

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Special story on baisakhi khalsa sajna Diwas- वैसाखी भारतवासियों का सदियों पुराना त्यौहार है। यह त्यौहार विक्रमी संवत के बैसाख महीने की संक्रांति को मनाया जाता है। यह मौसमी त्यौहार है। किसान अपनी पकी फसल को देखकर आनंदित हो जाता है। नई फसल की आमद हर वर्ग को अपनी आर्थिक खुशहाली का संदेश देती है। इस तरह बैसाख लोगों की आर्थिकता तथा खुशहाली से जुड़ा विशेष दिन है।

PunjabKesari Happy Baisakhi

Baisakhi 2025 Date Importance Significance And History Of Khalsa Panth: पंजाब के शूरवीरों के लिए यह अपने भविष्य हेतु योजनाएं तैयार करने का दिवस है, जिसका सिखों के लिए बड़ा महत्व है। पहले पातशाह साहिब श्री गुरु नानक देव जी ने समूची मानवता को जब्र और जुल्म का डटकर मुकाबला करने की प्रेरणा दी।

Baisakhi and the founding of the Khalsa- गुरु जी ने अत्याचारी तथा चालाक लोगों के हाथों लूट का शिकार हो रहे भोले-भाले लोगों को सचेत किया और महिलाओं तथा दबे-कुचले लोगों को अपने अस्तित्व का एहसास करवाने का क्रांतिकारी काम किया। इस कार्य की सफलता के लिए गुरु साहिबान ने उम्र भर कठिन संघर्ष किया।

Happy baisakhi and birth of khalsa: गुरुओं की प्रेरणा
बैसाखी के दिन को मनाने के लिए सबसे पहले सिखों को श्री गुरु अमरदास जी ने प्रेरणा दी। गुरु जी ने भाई पारो जुलका को बैसाखी का पर्व मनाने का आदेश देकर संगत को इकट्ठा किया। बैसाखी के अवसर पर एकत्रित संगत को सब कर्मकांड छोड़कर अकाल पुरख का नाम सिमरन करने, हाथों से किरत करने तथा बांट कर खाने के सिद्धांत पर डटकर पहरा देने की प्रेरणा दी।

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छठे पातशाह श्री गुरु हरिगोबिंद साहिब जी ने सिखों को शस्त्रधारी होने की प्रेरणा दी। जालिमों का रूप धारण कर गए हाकिमों से रक्षा के लिए शस्त्रों की ही जरूरत थी। संगत गुरु के ओट आसरे में बढ़िया शस्त्र एवं घोड़े लेकर पहुंचने लगी। सत्य पर मर मिटने वाले शूरवीरों की तैयारियां देख कर पापियों के हृदय कांपने लगे।

दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने यही परंपरा आगे बढ़ाते हुए 13 अप्रैल, 1699 को बैसाखी वाले दिन शस्त्र धारण करना सिक्खी का जरूरी अंग बना दिया। गुरु जी ने भरे दीवान में से पांच सिरों की मांग की। बिना किसी जात-पात, ऊंच-नीच के भेद से पांच सिर पेश हुए। इन पांच जांनिसारों से उस खालसा पंथ का जन्म हुआ जो हर बड़ी से बड़ी मुसीबत के आगे तन कर खड़ा हो सकता है।

गुरु साहिबान से प्राप्त शिक्षा तथा हक-सच के लिए मर-मिटने की प्रेरणा के कारण खालसा पंथ ने बड़ी से बड़ी कुर्बानी दी। गुरु साहिब ने इस पंथ में शामिल होकर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। खालसा पंथ क्रांतिकारी गतिविधियों का अग्रणी सिद्ध हुआ। 1733 ई. की बैसाखी को जकरिया खान ने खालसा की बढ़त के आगे घुटने टेकते हुए गुरु पंथ को नवाबी की पेशकश की, जिसे खालसा पंथ ने कबूल किया था।

1747 ई. में बैसाखी के दिन एकत्रित खालसा पंथ ने रामरौणी की कच्ची गढ़ी बनाने के लिए सहमति प्रकट की थी। यह गढ़ी सिखों के लिए कई बार शरणस्थल सिद्ध हुई। 1748 ई. में पंथ खालसा नामक जत्थेबंदी भी बैसाखी के दिन ही तैयार की गई।
(‘गुरमत ज्ञान’ से साभार)

 

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