Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Mar, 2022 12:06 PM
हम में से अधिकांश लोगों का मानना है कि हम अपने सभी कार्यों के कारण अपने भाग्य के स्वामी हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि गुणों (लक्षण/चरित्रों) के बीच बातचीत से कर्म बनता है, न कि किसी कर्ता के कारण। प्रकृति से 3 गुण पैदा होते हैं
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Srimad Bhagavad Gita: हम में से अधिकांश लोगों का मानना है कि हम अपने सभी कार्यों के कारण अपने भाग्य के स्वामी हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि गुणों (लक्षण/चरित्रों) के बीच बातचीत से कर्म बनता है, न कि किसी कर्ता के कारण। प्रकृति से 3 गुण पैदा होते हैं जो आत्मा को भौतिक शरीर के साथ बांधते हैं। हम में से प्रत्येक में तीन गुण- ‘सत्व’, ‘रज’ और ‘तम’ अलग-अलग अनुपात में मौजूद हैं। ‘सत्व’ गुण ज्ञान के प्रति लगाव है, ‘रज’ गुण कर्म के प्रति आसक्ति है और ‘तम’ अज्ञानता तथा बेपरवाही की ओर ले जाता है। जैसे ‘इलैक्ट्रॉन’, ‘प्रोटॉन’ और ‘न्यूट्रॉन’ का मेल कई तरह की चीजों का उत्पादन करता है, उसी तरह तीनों गुणों का मेल हमारे स्वभाव और कार्यों के लिए जिम्मेदार है।
हम में से प्रत्येक में एक गुण, दूसरे गुणों पर हावी होने की प्रवृत्ति रखता है। वास्तव में, लोगों के बीच मेल-मिलाप और कुछ भी नहीं, बल्कि उनके गुणों के बीच मेल-मिलाप है।
जिस तरह विद्युत चुंबकीय क्षेत्र में रखा गया चुम्बक उसी क्षेत्र के साथ घूमता है, किसी गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की ओर वस्तुएं आकर्षित होती हैं, ऐसे कई भौतिक और रासायनिक गुण हैं। इसी तरह कर्म किसी कर्ता से नहीं बल्कि गुणों के कारण होता है।
भगवान श्रीकृष्ण स्वचालितता (अपने आप होने वाले कार्य) की ओर इशारा करते हैं। यहां तक कि हमारा अपना भौतिक शरीर भी काफी हद तक स्वचालित रूप से कार्य करता है।
ज्ञान के इस मार्ग में मुख्य बाधा अहंकार है। हमारा वर्चस्व हमें विश्वास दिलाता है कि हम ही कर्ता हैं, जो अहंकार को जन्म देता है लेकिन वास्तव में इन तीनों गुणों का परस्पर मेल ही कर्म का निर्माण करता है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्म-सुधार की यह जिम्मेदारी पूरी तरह से हमारे अपने कंधों पर आती है और कोई अन्य ऐसा नहीं कर सकता।