Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Sep, 2023 07:58 AM
श्रीमद्भगवद्गीता का एक-एक शब्द वैसे तो सोने से भी अधिक शुद्ध और हीरे से भी अधिक चमक वाला है पर क्या आप जानते हैं कि इस कलियुग में पश्चिम बंगाल
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कोलकाता (इंट): श्रीमद्भगवद्गीता का एक-एक शब्द वैसे तो सोने से भी अधिक शुद्ध और हीरे से भी अधिक चमक वाला है पर क्या आप जानते हैं कि इस कलियुग में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 87 वर्ष के डाक्टर मंगल त्रिपाठी ने सोने, चांदी और हीरे का उपयोग करके गीता लिखी है। इसे लिखने में उन्हें 50 वर्ष का समय लगा है।
यह गीता लिखने में मंगल त्रिपाठी ने अपने जीवनभर की पूंजी लगा दी है। आपको जानकार हैरानी होगी कि त्रिपाठी ने इस काम के लिए किसी से कोई सहायता नहीं ली। 8 पत्रों की इस गीता को पूरी तरह से चांदी पर लिखा गया है। इस गीता में लगभग 22 ब्लॉक हैं। इनको हम पत्र (कार्ड) कहते हैं। इसमें 23 कैरेट सोने की पन्नी बनाई गई और उसके बाद पन्नी के साथ हर एक अध्याय को एक-एक पत्र में लिख दिया गया है। इसमें लिखे एक-एक अक्षर को बिठाया गया है, जिसमें काफी मेहनत लगी है। उन्होंने कहा कि मेरी कल्पना थी कि इसे सोने और चांदी से लिखा जाए। इसमें मेरे मित्र ने मेरी सहायता की और अब स्वर्णमयी गीता हमारे सामने है। सोने से बनी इस गीता को 23 पत्रों में लिखकर उसके 18 अध्यायों को समाहित किया गया है। इतना ही नहीं, हजार पन्नों की गीता में 500 चित्र भी हैं।
मंगल त्रिपाठी ने बताया कि इसमें गीता माता की तस्वीर उकेरी गई है। उन्हें कमल पर बैठे दिखाया गया है। कमल भक्ति, प्रीति और शांति का प्रतीक है और इस कमल में 18 पंखुड़ियां लगाई गई हैं। इसके अलावा इसके 3 हाथों में से एक में चक्र है, एक में शंख और एक में पद्म है। यह उनकी आशीर्वाद मुद्रा है। मंगल त्रिपाठी के अनुसार इस गीता का एक-एक चित्र जर्मन पेपर से बनाया गया है। उस पर वॉश पेंटिंग से बनाए गए चित्र हैं। प्रत्येक चित्र को बनाने मे कम से कम एक महीने का समय लगा है।
People tried to buy लोगों ने खरीदने की कोशिश की
मंगल त्रिपाठी ने यह भी बताया कि स्वर्णमयी गीता को लोग करोड़ों रुपए की कीमत देकर खरीदना चाहते थे पर मैंने उन्हें इसे नहीं बेचा। उनका कोई न कोई स्वार्थ था। मैंने इसे सभी माताओं को समर्पित करने का निर्णय लिया है। उन्होंने बताया कि जब मैं अमरीका में था तो मुझे विश्व रामायण गोष्ठी के 5 लोगों में चुना गया था। वहां लोगों ने कहा था कि गीता मां की एक तस्वीर आप किसी को बेच दीजिए। मैंने कहा कि यह मैं नहीं दे सकता क्योंकि यह मेरी आत्मा है, यह मेरा धर्म है, मैं अपना धर्म नहीं बेच सकता।
Credit given to former Prime Minister Morarji Desai पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को दिया श्रेय
डॉक्टर मंगल त्रिपाठी ने इस स्वर्ण गीता को लिखने का पूरा श्रेय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को दिया। उन्होंने बताया कि उस समय मैं बॉम्बे में था। वहां एक ज्ञानी मुनि थे, उनका नाम मुनि राकेश था। उन्होंने मुझे मोरार जी देसाई से मिलवाया। मोरार जी देसाई ने मुझसे कहा कि तुम गीता पर काम करो। इस काम को इस संकल्प के साथ करो कि आप इसके लिए किसी से सहायता नहीं लोगे, कभी किसी के सामने नहीं झुकोगे। इसके बाद मैंने उनसे कहा था कि आप मेरा मार्गदर्शन करेंगे, इस पर देसाई ने कहा था-अवश्य और उन्होंने अपना वादा निभाया। मैं इसका एकमात्र श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई को देना चाहूंगा।