Kundli Tv- इन मंत्रों में छिपा है Married Life की Happiness का राज़

Edited By Jyoti,Updated: 23 Aug, 2018 06:53 PM

the secret of married life is the secret of happiness in these chants

हिंदू धर्म में शादी का शुभ कार्य मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न किया जाता है। ज्योतिष की मानें तो शादी में प्रयोग किए गए ये मंत्र सुख, शांति, समृद्धि और विश्व-कल्याण की कामना करते, विवाह के कार्य को सम्पन्न करते हैं।

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हिंदू धर्म में शादी का शुभ कार्य मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न किया जाता है। ज्योतिष की मानें तो शादी में प्रयोग किए गए ये मंत्र सुख, शांति, समृद्धि और विश्व-कल्याण की कामना करते, विवाह के कार्य को सम्पन्न करते हैं। इस अवसर पर हर वर-वधू सदा साथ रहकर खुशहाल जीवन बिताने की कामना करते हैं। तो आईए जानते हैं आख़िर वो कौन से मंत्र हैं जिनमें छुपा है मैरिड लाइफ की खुशहाली का राज़-
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरूमेदेव शुभ कार्येषु सर्वदा॥


अर्थात-
विशाल शरीर और वक्र सूंड़ वाले, मुखमंडल पर सहस्त्रों सूर्यों का तेज धारण करने वाले हे ईश्वर! मेरे सभी अच्छे कार्यों को सदा बाधामुक्त करना। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले उसकी सफलता के लिए इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
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इहेमाविन्द्र सं नुद चक्रवाकेव दम्पति।
प्रजयौनौ स्वस्तकौ विस्वमायुर्व्यअशनुताम्म॥


अर्थात-
अथर्ववेद से लिए गए इस मंत्र का आशय है कि हे इंद्र देव! तुम इस जोड़ी को चक्रवाकेव पक्षी के जोड़े के समान सदा साथ और प्रसन्नचित रखना।

धर्मेच अर्थेच कामेच इमां नातिचरामि।
धर्मेच अर्थेच कामेच इमं नातिचरामि॥

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अर्थात-
विवाह कर्मकांड में वर्णित इस श्लोक का अर्थ है कि ‘मैं(वर-वधू दोनों) अपने हर कर्तव्य, आवश्यकताओं में तुमसे सलाह लूंगा और उसके अनुरूप ही कार्य करूंगा।’ ये मंत्र बारी-बारी से वर और वधू द्वारा उच्चारित किया जाता है।

गृभ्णामि ते सुप्रजास्त्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्यथासः।
भगो अर्यमा सविता पुरन्धिर्मह्यांत्वादुः गार्हपत्याय देवाः॥


अर्थात-
विवाह कर्मकाण्ड से लिए गए इस मंत्र का अर्थ है कि ‘’मैंने तुम्हारा हाथ थामा है और कामना करता हूँ कि हमारी संतान यशस्वी और हमारा बंधन अटूट हों. भगवान इंद्र, वरूण और सावित्री के आशीर्वाद और तुम्हारे सहयोग से मैं एक आदर्श गृहस्थ बन सकूं।’’ वर को इस मंत्र का उच्चारण करना पड़ता है।
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सखा सप्तपदा भव।
सखायौ सप्तपदा बभूव।
सख्यं ते गमेयम्। 
सख्यात् ते मायोषम्।
सख्यान्मे मयोष्ठाः।


अर्थात-
इस मंत्र का उच्चारण वर को करना पड़ता है। इसका अर्थ है ‘तुमने मेरे साथ मिलकर सात कदम चला है इसलिए मेरी मित्रता ग्रहण करो। हमने साथ-साथ सात कदम चले हैं इसलिए मुझे तुम्हारी मित्रता ग्रहण करने दो। मुझे अपनी मित्रता से अलग होने मत देना।

धैरहं पृथिवीत्वम्।
रेतोअहं रेतोभृत्त्वम्।
मनोअहमस्मि वाक्त्वम्।
सामाहमस्मि ऋकृत्वम्।
सा मां अनुव्रता भव।

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अर्थात-
इस मंत्र का आशय है कि ‘मैं आकाश हूँ और तुम धरा। मैं उर्जा देता हूं और तुम उसे ग्रहण करती है। मैं मस्तिष्क हूँ और तुम शब्द. मैं संगीत हूं और तुम गायन। तुम और मैं एक-दूसरे का अनुसरण करते हैं. यह वर के द्वारा उच्चारित किया जाता है।’

गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्थासः।
भगो अर्यमा सविता पुरंधिर्मह्यं त्वादुर्गार्हपत्याय देवाः॥

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अर्थात-
ऋग्वेद से लिए गए इस मंत्र का आशय है कि सवितृ, पुरंधि आदि के आशीर्वाद से मुझे तुम्हारे जैसी भार्या मिली है। मैं तुम्हारे दीर्घ आयु की कामना करता हूं।
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