धन और पुत्र की इच्छा रखने वाले अवश्य पढ़ें...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Jun, 2020 12:58 PM

those desiring wealth and sons must read

एक गांव में एक धनवान सेठ रहता था। धन-संपदा, ऐशो-आराम की उसको कोई कमी न थी परंतु पुत्र सुख उनके भाग्य में न था। बड़े जतन, पूजा-पाठ करने के बाद सेठानी को पुत्री हुई। सेठ जी ने अपनी पुत्री को

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

एक गांव में एक धनवान सेठ रहता था। धन-संपदा, ऐशो-आराम की उसको कोई कमी न थी परंतु पुत्र सुख उनके भाग्य में न था। बड़े जतन, पूजा-पाठ करने के बाद सेठानी को पुत्री हुई। सेठ जी ने अपनी पुत्री को ही बड़े लाड-प्यार से एक पुत्र की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया। सेठानी हमेशा सेठ जी को एक पुत्र गोद लेने को कहती लेकिन सेठ जी पुत्र सुख उनके भाग्य में न होने की बात कह कर सेठानी की बात टाल जाते।

खैर, हर बेटी की तरह सेठ जी की बेटी भी शादी योग्य हुई और तय समय पर शुभ मुहूर्त देखाकर सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी धनवान व्यक्ति से कर दी परंतु बेटी के भाग्य में धन का सुख न था। बेटी का पति जुआरी, शराबी निकला और शराब व जुए में उसकी सारी धन-संपदा समाप्त हो गई।

बेटी को इस तरह दुखी देख कर सेठानी भी दुखी होती। एक दिन सेठानी ने सेठ जी के पास जाकर अपनी बेटी के दुख पर चिंता जताते हुए कहा, ‘‘आप दुनिया की मदद करते हो लेकिन यहां हमारी खुद की बेटी दुखी है। आप उसकी मदद क्यों नहीं करते?’’

सेठ जी बेटी के दुख से दुखी थे लेकिन वह जानते थे कि जिस तरह उनके भाग्य में पुत्र प्राप्ति नहीं थी, ठीक उसी तरह बेटी के भाग्य में भी अभी सुख नहीं है। उन्होंने सेठानी को समझाते हुए कहा, ‘‘भाग्यवान! अभी उसके भाग्य में सुख नहीं लिखा है, जब उसका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद को तैयार हो जाएंगे और खोई हुई धन संपदा फिर से प्राप्त हो जाएगी।

लेेकिन सेठानी को तो अपनी बेटी के दुख की चिंता खाए जा रही थी। एक दिन सेठ जी किसी काम से दूसरे शहर गए हुए थे तभी उनके दामाद का सेठ जी के घर आना हुआ। सेठानी ने बड़ी आवभगत से अपने दामाद का आदर किया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करवाया तभी उनके मन में बेटी की मदद करने का विचार आया और उन्होंने सोचा कि क्यों न बूंदी के लड्डुओं के बीच सोने के सिक्के रख कर बेटी के घर भिजवा दिए जाएं। बस सेठानी के सोचने भर की देर थी। उन्होंने जल्दी से बूंदी के लड्डू बनाए और एक-एक सोने का सिक्का लड्डुओं के बीच रख कर दामाद को टीका लगाकर देसी घी के लड्डू जिनमें सिक्के थे, देकर विदा किया।

लड्डू लेकर दामाद जी घर से निकले। रास्ते में उन्हें एक मिठाइयों की दुकान दिखाई दी। दामाद जी ने सोचा कि इतना वजन कौन घर लेकर जाए, क्यों न लड्डू मिठाई की दुकान पर बेच दिए जाएं। बस फिर क्या था। दामाद जी के सोचने भर की देर थी कि उन्होंने लड्डुओं की थैली को मिठाई की दुकान पर बेच कर नकदी ले ली और खुश होकर घर की ओर निकल पड़े।

उधर सेठजी बाहर से आए तो उन्होंने सोचा क्यों न घर के लिए देसी घी के बूंदी के लड्डू ले चलूं। आगे जाकर सेठ जी भी उसी दुकान पर गए जहां उनके दामाद ने बूंदी के लड्डू बेचे  थे। सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे, दुकानदार ने लड्डुओं की वही थैली सेठ जी को दे दी जो उनके दामाद कुछ ही देर पहले दुकानदार को बेचकर गए थे।

लड्डू लेकर सेठ जी घर आए और लड्डुओं की थैली सेठानी को दी। लड्डुओं की वही थैली देख सेठानी ने लड्डुओं को फोड़कर देखा तो उनमें से सिक्के निकले। सिक्के देख सेठानी ने माथा पकड़ लिया और बेटी की मदद करने के लिए दामाद जी को लड्डुओं में सिक्के छुपाकर देने की बात सेठ जी को बताई।

सेठानी की बात सुनकर सेठ जी ने कहा, ‘‘भाग्यवान! मैं न कहता था कि अभी धन सुख उनके भाग्य में नहीं है। इसलिए तुम्हारे दिए गए सोने के सिक्के फिर से तुम्हारे पास ही आ गए।’’    

 

 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!